साया
मेरा साया तो हमेशा मेरे आग़ोश में है
पर वह बस, तेरी ही रोशनी में नज़र आता है
तेरी रोशनी में मैं तो क्या
मेरा साया भी नज़र आता है
न हो तू तो कहीं, कुछ भी नहीं दिखता है,
तेरे आलोक से ही, मैं और मेरा साया नज़र आता है
मेरे साये पर ना जा, साया तो बस माया है
साये के आगे जो है बस वही हक़ीक़त है
साया तो कभी छोटा, कभी होता बड़ा है
उसका जो आग़ाज़ है, ना बढ़ता है न घटता है
रोशनी – साये का है एक अजूबा नाता
ये न कभी टूटता है, ना ही साथ छोड़ता है
— राम बजाज
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