आज सुबह बिस्तर से चादर हटाई तो देखा
……………बिस्तर पर रात के सपनों के शव बिखरे थे
और मेरे सूखे आंसुओं के दाग लगे थे
……………जिगर के दर्द को गहरा कर, दिल के टुकड़े-टुकड़े कर रहे थे
……………मेरे सुकून को हर कर, मुझे बेचैन कर रहे थे
आज सुबह जब बिस्तर से चादर हटाई तो देखा
……………बिस्तर पर रात के सपनों के शव बिखरे थे

सपनों की दुनिया में खो गया था मैं
सपनों से जागा, तो लगा सो गया हूँ मैं
मुझे तो कुछ ख़बर नहीं, कब सोया और कब जागा हूँ मैं
मुझे तो परवाह नहीं, क्यों सोया क्यों जागा हूँ मैं
सपनों की दुनिया में खो गया था मैं

सपनों की माला में तेरा ही नाम पिरोया है
गिनती तो मुझे आती नहीं, कितनों को पिरोया है
क्यों गिनूं , यह सपना भी तेरा वो सपना भी तेरा जब सब सपने तेरे ही हैं
यह ख्याल भी तेरा, वो ख़याल भी तेरा
यह दर्द भी तेरा, यह सुकून भी तेरा
सपनों की माला में तेरा ही नाम पिरोया है

— राम बजाज

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