(“हँसते जख्म” के गाने आज सोचा तो आँसू भर आए की तर्ज़ पर )
तुमने सोचा कि हम क्यों न रोये
आहें भर बस , यूँ ही गुनगुनाए
धड़कनों ने कहा धड़कनों से
तेज़ ना चल कहीं थम ना जाए
दिल की तड़पन को तुमने ना जाना
हमको दर्दों को आए छुपाना
एक तरफ़ा नहीं प्यार उनका
इस इशारे पे हम शरमाए
(जब) उनकी नज़रें मिलीं नज़रों से
(हम) खुद ही खुद से शर्माए
— राम बजाज