ये दोहे श्री अनूप जलोटा के गाये हुए "कबीर दोहे" की धुन पर सजते हैं
सेवा करना तब सजे, करे बिना निज नाम ।
सच्ची सेवा वह करे, हो कर के निष्काम ॥
तृष्णा से बच कर रहो, तृष्णा में है आग ।
आग से खेलो मत मना, भस्म करे यह आग ॥
“कबिरा” चिंता क्यूँ करे, चिंता से दुःख होय ।
तज चिंता रे तू मना, रोग से मुक्ति होय ॥
— राम बजाज
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