मेरी अज्जी और मैं — लेखक के बारे में

डॉ. नीलिमा कडाम्बी पेशे से एक सर्जन और स्वास्थ्यरक्षक हैं । जनकल्याण और समग्रस्वस्थता से जुड़ाव इनका केवल पेशा ही नहीं, बल्कि जुनून है । ५० वर्ष की उम्र से इहोंने अपने समय का ५०% समय समाज के बच्चों और वरिष्ठ जनों के लिए स्वैच्छिक सेवा कार्य को समर्पित कर रखा है । नीलिमा ३६ देशों की यात्रा कर चुकी हैं और रूसी सहित ७ भाषाओं मे धाराप्रवाह बात कर सकती हैं।

अपने पति डॉ. विवेक के साथ नीलिमा बंगलौर, भारत, में रहती हैं । इनकी इकलौती बेटी पूजा ने भी ८ वर्ष अमेरिका में उच्चशिक्षा प्राप्त करने के बाद भारत में ही रहना चुना है ।

इस पुस्तक की रचना नीलिमा ने अपनी प्यारी अज्जी (दादी) डॉ. सरलादेवी खोत को श्रद्धांजलि के तौर पर की है, और इस पुस्तक के मौलिक अंग्रेज़ी संस्करण का विमोचन डॉ. सरलादेवी की १२० वीं जयंती पर किया गया था ।

अग्ना यो मर्त्यो दुवो धियं जुजोष धीतिभिः

भसन्नुष प्र पूर्व्य एषं वुरितावसे ||

(जब नश्वर मनुष्य अपने चिंतन द्वारा अग्नि में कर्म और विचार का आनंद लेने लगता है, तो वह प्रकाश से चमक उठता है और एक सर्वोच्च बन जाता है; उसे वह प्रेरणा प्राप्त होती है जो उसे सुरक्षा की ओर ले जाती है।)

Translation source: https://incarnateword-in.translate.goog/sabcl/11/bharadwaja-barhaspatya?_x_tr_sl=en&_x_tr_tl=hi&_x_tr_hl=hi&_x_tr_pto=tc

लफ़्ज़ों में क्या रखा है

कहा कुछ तुमने ?– सुना नहीं, दुआ थी या बद्दुआ,  पता नही । हाँ और ना से,  हक़ीक़त बदलते देखी बातों  का अब  मुझे, आसरा नहीं ।

Read More »
यादों के साये (Nostalgia)

मुट्ठी में दुअन्नी

बचपन में हम एक छोटी सी औद्योगिक बसाहट में रहते थे – तीन बँगले, ८-१० क्वार्टर, मजदूरों की बस्ती, एक डिस्पेंसरी और बैरकनुमा ऑफिसों के

Read More »