अहिंसा की शुरुआत

अहिंसा की शुरुआत

शक था मन में ज़िंदगी, हिंसा बिना कैसे जीऊँ,
कोई आए मारने तो शांति से पिटता रहूँ?
धर्म ये कहता नहीं, कायर बने दुबके रहो,
आत्मरक्षा भाव से, खुद की सदा रक्षा करो
हिंसा क्षय करने के आगे, आयेंगे मौके कई
क्यों नहीं वाणी के संयम, से इसे शुरुआत दो ?
है सही कि, राह लंबी, है बड़ी ये मोक्ष की
एक छोटे कदम से ही, क्यों न ये शुरुआत हो ?

— विनोद बाँठिया

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