कहत कबीर ४८

कबीरदासजी संत कहे जाते हैं, पर इनके विचारों और रचनाओं का क्षेत्र केवल धर्म, अध्यात्म, चिंतन और भजन नहीं है। उन्होंने सांसारिक जीवन — व्यक्ति के चरित्र और व्यवहार; समाज की प्रचलित प्रथाओं, व्यवहारों और अंधविश्वासों; समाज में फैले ऊँच-नीच के भाव; जाति प्रथा की बुराइयों; सभी धर्म-संप्रदायों के व्यवहार में आए हुए अंधविश्वासों तथा पाखण्डों आदि — पर भी गहरा विचार किया है और अपनी रचनाओं में उन पर करारी टिप्पणियाँ भी की हैं। उनके मत में ये वे बुराइयाँ हैं जो समाज की सुख-शांति, सेहत और ख़ुशहाली के रास्ते में बाधा पैदा करती हैं कबीरदास जी के दोहों तथा अन्य रचनाओं को सही सही समझ पाने के लिए हमें इन सभी बातों को ध्यान में रखना चाहिए।

— कुसुम बांठिया

Read in English

देह खेह हो जायगी, कौन कहेगा देह ।
निश्चय कर उपकार ही, जीवन का फल येह ।।

मनुष्य इस संसार में आकर अपने शरीर को ही अपने अस्तित्व का आधार मान लेता है । इसी की वह देखभाल करता है और इसे सुख देने के लिए ही वह तमाम प्रयत्न करता है । इस दोहे में कबीरदास जी समझाते हैं कि जीवन में वास्तविक महत्व शरीर का नहीं होता बल्कि मनुष्य द्वारा किए गए अच्छे कार्यों का होता है ।
कबीरदास जी का आशय है, मनुष्य को लगता है कि शरीर से बने व्यक्तित्व के कारण ही उसकी पूछ होती है, लोग उसके आगे याचक बनकर आते हैं, पर वह यह नहीं सोचता कि इस शरीर को अंत में मिट्टी में ही मिल जाना है । तब इसे पूछनेवाला भी कोई नहीं होगा । दूसरी ओर, अगर वह जीवन में औरों का उपकार करता है तो उसका जीवन सार्थक होगा और मृत्यु के बाद भी उसका नाम बना रहेगा ।

कुटिल बचन नहिं बोलिये, शीतल बैन ले चीन्हि ।
गंगाजल शीतल भये, परबत फोड़ा तीन्हि ।।

कबीरदास जी ने अपने सामाजिक व्यवहार संबंधी अनेक दोहों में मीठी वाणी का महत्व समझाया है । समाज में कई बार ऐसा होता है कि कठिन स्थितियों में, ताकतवर विरोधी से जूझने के लिए या अपनी मज़बूती दिखाने के लिए लोग कड़वे और कठोर शब्दों का प्रयोग करने लगते हैं । इस दोहे में कबीरदास जी समझा रहे हैं कि किसी भी दशा में इस तरह की भाषा नहीं बोलनी चाहिए । भाषा हमेशा मधुर और शीतल, अर्थात शांति देने वाली होनी चाहिए । कठिन कार्य भी उससे उसी प्रकार सिद्ध हो सकते हैं जैसे गंगा की शीतल धारा पर्वत की चट्टानों को तोड़कर आगे बढ़ जाती है ।

  • कहत कबीर ०३

    ऊँचे पानी ना टिकै, नीचे ही ठहराय । // बुरा जो देखन मैं चला , बुरा न मिलिया कोय । ऊँचे पानी ना टिकै, नीचे ही ठहराय//बुरा जो देखन मैं चला , बुरा न मिलिया कोय// कबीरदास जी संत कहे जाते हैं, पर इनके विचारों और रचनाओं का क्षेत्र केवल धर्म, अध्यात्म, चिंतन और भजन…

  • कहत कबीर ०४

    बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर । // काम क्रोध मद लोभ की, जब लग घट में खानि । कबीरदास जी संत कहे जाते हैं, पर इनके विचारों और रचनाओं का क्षेत्र केवल धर्म, अध्यात्म, चिंतन और भजन नहीं है। उन्होंने सांसारिक जीवन — व्यक्ति के चरित्र और व्यवहार; समाज की प्रचलित प्रथाओं,…

  • कबीर दास जी से प्रेरित कुछ दोहे — १

    यह दोहे श्री अनूप जलोटा के गाये हुए “कबीर दोहे” की धुन पर सजते हैं Ego को न बढ़ाइए, Ego में है दोष  जो Ego को कम करे, उसे मिले संतोष मानुष ऐसा चाहिए, प्रेम से हो भरपूर सेवा सब की जो करे, रहे अहम् से दूर  “कबिरा” नगरी प्रेम की, उसमे तेरा वास  उस नगरी के द्वार पर, लिखा है “कर विश्वास” — राम बजाज Image Credits: https://www.tentaran.com/happy-kabir-das-jayanti-wishes-status-images/

वाव / बावड़ी /Step-well

मनुष्यों के अस्तित्व के लिए पानी आवश्यक है । इसलिए, जैसे-जैसे मानव जाति खानाबदोश “शिकार-संग्रह” जीवन शैली से “कृषिवाद” तक आगे बढ़ी, उन्होंने एक स्थान

Read More »
गद्य (Prose)

अडालज की वाव

हमारा पहला पड़ाव था “अडालज की वाव” ।  वाव या बावड़ी या, अंग्रेज़ी में, Stepwell, का इतिहास बहुत पुराना है ।  पानी को संचय करनेवाली

Read More »