कहत कबीर ५३

कबीरदासजी संत कहे जाते हैं, पर इनके विचारों और रचनाओं का क्षेत्र केवल धर्म, अध्यात्म, चिंतन और भजन नहीं है। उन्होंने सांसारिक जीवन — व्यक्ति के चरित्र और व्यवहार; समाज की प्रचलित प्रथाओं, व्यवहारों और अंधविश्वासों; समाज में फैले ऊँच-नीच के भाव; जाति प्रथा की बुराइयों; सभी धर्म-संप्रदायों के व्यवहार में आए हुए अंधविश्वासों तथा पाखण्डों आदि — पर भी गहरा विचार किया है और अपनी रचनाओं में उन पर करारी टिप्पणियाँ भी की हैं। उनके मत में ये वे बुराइयाँ हैं जो समाज की सुख-शांति, सेहत और ख़ुशहाली के रास्ते में बाधा पैदा करती हैं कबीरदास जी के दोहों तथा अन्य रचनाओं को सही सही समझ पाने के लिए हमें इन सभी बातों को ध्यान में रखना चाहिए।

— कुसुम बांठिया

Read in English

सब ही भूमि बनारसी, सब निर गंगा होय ।
ज्ञानी आतम राम है, जो निरमल घट होय ।।

कबीरदास जी हमेशा बाह्याचारों और रीतियों को — जप-तप, पूजा-नमाज़, तीर्थयात्रा आदि को धर्म का अनिवार्य अंग मानने से इनकार करते रहे हैं । उनके अनुसार धर्म हृदय और आत्मा का विषय है और जो तपस्या और साधना द्वारा इन्हें निर्मल कर लेता है, उसे ही सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है । वही सच्चा धर्मात्मा होता है और उसी की आत्मा परमात्मा में लीन हो जाती है । उसे किसी तीर्थ की यात्रा भी नहीं करनी होती है न किसी पवित्र नदी में स्नान करना होता है। उसकी आत्मा में प्रभु बसते हैं इसलिए उसके लिए संसार का कोई भी स्थान काशी जैसा ही पवित्र होता है और हर नदी गंगा जैसी पावन ।

जीवन में मरना भला, जो मरि जाने कोय ।
मरना पहिले जो मरै, अजर अमर सो होय ।।

इस दोहे का शब्दार्थ — जिसे मरना आता है उसके लिए जीवन में मर जाना ही बेहतर है। जो व्यक्ति मृत्यु से पहले ही मर जाता है, उसे बुढ़ापा आता है न मृत्यु, दिमाग को एक अजीब सी छवि प्रस्तुत करता है । इसे समझने के लिए पहले हमें कबीरदास जी की एक संकल्पना को जानना होगा ।
कबीरदास जी की इस संकल्पना में मरने के दो प्रकारों का वर्णन किया गया है – पहला, जिससे हम सब वाकिफ हैं, शारीरिक मृत्यु, जिसमें मनुष्य के हृदय धड़कना बंद हो जाती है, शरीर निर्जीव हो जाता है और चेतना समाप्त हो जाती है । इस स्थिति में इस संसार के जीवन, संबंधों और स्थितियों का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
कबीरदास जी की मरने की दूसरी परिकल्पना में, जीवित स्थिति में भी, मनुष्य पर संसार की स्थितियों और संबंधों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता अगर वह वैराग्य से मन में स्थिरता ला सके । उसके लिए माया से बना यह संसार उतना ही निरर्थक है जितना किसी मृतक के लिए होता ।
इस दोहे की पहली पंक्ति में कबीरदास जी कहते हैं कि अगर किसी को मरने का उचित तरीका – जीवित रहते हुए भी संसार की माया से अप्रभावित रहना, आता हो तो उसे मर जाना चाहिए ।
दोहे की दूसरी पंक्ति में वह अपने इस व्यक्तव्य का कारण बताते हुए कहते हैं कि जो व्यक्ति इस तरह मृत्यु को प्राप्त करता है, संसार के मोह से मुक्त हो जाता है,
उसकी आत्मा शारीरिक मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त करके ब्रह्म में विलीन हो जाती है । उसका, इस पृथ्वी पर जन्म-जरा-मृत्यु का चक्र, — जन्मने – वृद्ध होने – मरने की प्रक्रिया, ख़त्म हो जाती है ।

  • कहत कबीर ०३

    ऊँचे पानी ना टिकै, नीचे ही ठहराय । // बुरा जो देखन मैं चला , बुरा न मिलिया कोय । ऊँचे पानी ना टिकै, नीचे ही ठहराय//बुरा जो देखन मैं चला , बुरा न मिलिया कोय// कबीरदास जी संत कहे जाते हैं, पर इनके विचारों और रचनाओं का क्षेत्र केवल धर्म, अध्यात्म, चिंतन और भजन…

  • कहत कबीर ०४

    बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर । // काम क्रोध मद लोभ की, जब लग घट में खानि । कबीरदास जी संत कहे जाते हैं, पर इनके विचारों और रचनाओं का क्षेत्र केवल धर्म, अध्यात्म, चिंतन और भजन नहीं है। उन्होंने सांसारिक जीवन — व्यक्ति के चरित्र और व्यवहार; समाज की प्रचलित प्रथाओं,…

  • कबीर दास जी से प्रेरित कुछ दोहे — १

    यह दोहे श्री अनूप जलोटा के गाये हुए “कबीर दोहे” की धुन पर सजते हैं Ego को न बढ़ाइए, Ego में है दोष  जो Ego को कम करे, उसे मिले संतोष मानुष ऐसा चाहिए, प्रेम से हो भरपूर सेवा सब की जो करे, रहे अहम् से दूर  “कबिरा” नगरी प्रेम की, उसमे तेरा वास  उस नगरी के द्वार पर, लिखा है “कर विश्वास” — राम बजाज Image Credits: https://www.tentaran.com/happy-kabir-das-jayanti-wishes-status-images/

पद्य (Poetry)

Dear Rain

My love, my heart whispers to you,In your gentle drops, my soul renews.You bring a smile, a soft delight,Farmers’ hearts rejoice, with hope so bright.

Read More »
गद्य (Prose)

मेरी अज्जी और मैं (९/२१)

शुरुआत में जाइए मेरी अज्जी और मैं (१/२१) स्त्री परिवार की धुरी होती है; परिवार समाज की बुनियादी इकाई होता है; समाज मिलकर राष्ट्र को

Read More »
गद्य (Prose)

मेरी अज्जी और मैं (८/२१)

शुरुआत में जाइए मेरी अज्जी और मैं (१/२१) इसके शीघ्र बाद ही, शायद घर में नन्हे-नन्हे बच्चे होने के कारण, उनका तबादला सुम्बावांगा हो गया

Read More »