एक हास्यास्पद विडंबना
यह कैसी विडंबना है कि हमारे कुछ समुदायों (communities) में महिलायें भगवान का नाम भी नहीं ले सकती हैं? उन बिचारियों के लिए देवताओं या भगवान का नाम लेना भी बड़ा अपराध माना जाता है और गलती से भी नाम लेने पर डांट-फटकार का पात्र बनना पड़ता है। कभी-कभी तो लोगों के सामने तिरस्कार का सामना करना पड़ता है।
इन समुदायों में महिलाओं को अपने पतिदेव, घर के बड़े मर्दों (दादा, नाना, ताऊ, जेठ, देवर इत्यादि) को पहले नाम (first name) से पुकारना मान-मर्यादा रहित, असभ्य माना जाता है । उनके नाम लेना केवल वर्जित ही नहीं, दंडनीय भी है। इसलिए, महिलाओं को हमेशा सतर्क रहना पड़ता कि कहीं गलती न हो जाए।
ये महिलाएँ उन लोगों के बारे में, जिनका वे नाम नहीं ले सकती हैं, आवश्यकता होने पर उनको किसी और नाम से पुकारती हैं—जैसे चिंटू के डैडी, मुन्नी के पिताजी, दुदु के नाना जी, छोटी के दादाजी, इत्यादि ।
एक बार ऐसे ही एक परिवार की बहू को उसकी सास ने बोला, “बहू, कभी कभी बाहर भी निकला कर और समाज के साथ होकर लोगों से व्यवहार किया कर—जैसे सहेलियों के साथ घूमना फिरना, कथा पर जाना इत्यादि किया कर। बहू को बात अच्छी लगी और उसने सोचा, क्यों न सबसे पहले एक भजन मंडली और कथा में चला जाए ।
कथा में पंडित जी ने भजन गाने शुरू किये । उन्होंने राम जी के भजन से शुरुआत की और बोले के इस भजन में मेरा साथ देना तो और भी आनंद आएगा और सब लोग उद्धार की तरफ बढ़ेंगे । उन्हों ने गाना शुरू किया —
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम
सीताराम, सीताराम
भज प्यारे मन सीताराम
जानकीरमणा सीताराम
जय जय राघव सीताराम
अब तो बहू बड़ी दुविधा में पड़ी कि मैं कैसे गाऊँ क्योंकि उसके पति का नाम था राम प्रसाद किशन लाल शिवंगल ।
थोड़ी देर बाद पास बैठी एक महिला उसे कोहनी मार कर बोली “चल तू भी गा ।” बहूरानी बेचारी क्या करे क्या न करे? अंत में उसे एक बात सूझी और वो गुनगुनाने लगी
रघुपति राघव राजा चिंटू के डैडी
पतित पावन सीता चिंटू के डैडी
सीता चिंटू के डैडी, सीता चिंटू के डैडी
भज प्यारे मन सीता चिंटू के डैडी
जानकीरमणा सीता चिंटू के डैडी
जय जय राघव सीता चिंटू के डैडी
ख़ैर, वो भजन ख़त्म हुआ तो पंडित जी ने दूसरा भजन प्रारंभ कर दिया ।
जग में सुन्दर हैं दो नाम
चाहे कृष्ण कहो या राम
बोलो राम राम राम,
बोलो श्याम श्याम श्याम
अरे! इसमे तो ससुर का भी नाम आ गया था । बहू की मुश्किल और बढ़ गई । लेकिन उसने बिना डरे या झिझके, फिर से अपना उपाय लगाया और गाना शुरू किया ।
जग में सुंदर है दो नाम,
चाहे मिन्टू के दादा कहो या चिंटू के डैडी
बोलो चिंटू के डैडी, चिंटू के डैडी, चिंटू के डैडी,
बोलो मिन्टू के दादा, मिन्टू के दादा, मिन्टू के दादा
बहू आज बहुत खुश थी कि उसने कथा में भाग लिया और सम्मान रखते हुए भगवान का नाम लिया ।
— राम बजाज