अहिंसा की शुरुआत

अहिंसा की शुरुआत

शक था मन में ज़िंदगी, हिंसा बिना कैसे जीऊँ,
कोई आए मारने तो शांति से पिटता रहूँ?
धर्म ये कहता नहीं, कायर बने दुबके रहो,
आत्मरक्षा भाव से, खुद की सदा रक्षा करो
हिंसा क्षय करने के आगे, आयेंगे मौके कई
क्यों नहीं वाणी के संयम, से इसे शुरुआत दो ?
है सही कि, राह लंबी, है बड़ी ये मोक्ष की
एक छोटे कदम से ही, क्यों न ये शुरुआत हो ?

— विनोद बाँठिया

पद्य (Poetry)

Dear Rain

My love, my heart whispers to you,In your gentle drops, my soul renews.You bring a smile, a soft delight,Farmers’ hearts rejoice, with hope so bright.

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गद्य (Prose)

मेरी अज्जी और मैं (९/२१)

शुरुआत में जाइए मेरी अज्जी और मैं (१/२१) स्त्री परिवार की धुरी होती है; परिवार समाज की बुनियादी इकाई होता है; समाज मिलकर राष्ट्र को

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गद्य (Prose)

मेरी अज्जी और मैं (८/२१)

शुरुआत में जाइए मेरी अज्जी और मैं (१/२१) इसके शीघ्र बाद ही, शायद घर में नन्हे-नन्हे बच्चे होने के कारण, उनका तबादला सुम्बावांगा हो गया

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