फोन कहाँ गया?

फोन कहाँ गया?

पिछले हफ्ते रविवार को मैं, अपनी पत्नी के साथ, मॉल गया । वहाँ पर ३-४ घंटे ख़रीदारी के बाद बढ़िया डिनर खाया और थके मांदे जब हम बाहर निकले तो काफ़ी देर तक पार्किंग लॉट में गाड़ी नहीं मिली । खैर, तीन-चार चक्कर लगाने के बाद आख़िर गाड़ी ही मिल गई । आदतन, मैंने अपना मोबाईल फोन गाड़ी में दो सीटों के बीच वाले पॉकेट में रखा और हम चल पड़े । ३५ मिनट की भीड़ भरी ड्राइव के बाद हम घर पहुंचे तो हमारी आरक्षित पार्किंग में किसी ने गाड़ी पार्क की हुई थी । कहीं दो ब्लॉक दूर एक पार्किंग की जगह खाली मिली । मैंने वहाँ गाड़ी पार्क की और हम लोग घर पहुंचे । सारे बैग और चीजें अपनी जगह रख कर बैठ गए ।
अभी हम बैठे ही थे कि मैंने सोचा मोबाईल पर कुछ संदेश (SMS) ही पढ़ लूँ । फोन को ढूढ़ा — टेबल पर, सोफ़े पर लेकिन कहीं नहीं मिला । बहुत सोचने के बाद ख़्याल आया कि फोन शायद गाड़ी में ही रह गया है। अपने ऊपर गुस्सा तो आया पर कोई तरीका ही नहीं था । बाहर जाकर गाड़ी से फोन लाना ही था । हताश हो कर कपड़े बदले और फोन लेने दो ब्लॉक दूर चल पड़ा। सौभाग्यवश गाड़ी बंद थी । गाड़ी खोली, और अन्दर देखा कि फोन वहीं था जहां मैं हमेशा रखता था । घर जाने के समय उसे लेना भूल गया था।
फोन लेकर गाड़ी में बैठ ही रहा था की मेरे दिमाग में एक ख्याल आया कि क्योँ न श्रीमती जी से थोड़ा स मज़ाक किया जाए। मैंने अपने फोन से श्रीमती जी का फोन मिलाया । श्रीमती जी ने फोन उठाया तो मैंने कहा —‘सुनो, मैंने फोन को बहुत ढूढ़ा लेकिन मिल नहीं।रहा। लगता है मैंने घर में कहीं रख दिया हो तो ज़रा उसको ढूढ़ो ना । शायद सोफ़े पर हो” । वह बोली वहाँ तो नहीं है । मैंने कहा शायद रसोईघर में हो । वहाँ भी नहीं था । शायद गुसलखानेमें हो । वहाँ भी नहीं था। अब श्रीमती जी को थोड़ा गुस्सा आया और बोलीं -“एक फोन को संभाल कर नहीं रख सकते, अपने आप को कैसे सम्हालते हो? मैं फोन रखती हूँ । मुझे बहुत काम हैं, खुद आ के ढूढ़ो”।
मेरी तो हंसी रोकने की क्षमता अब तक खत्म हो गई थी और मैंने पत्नी को ठहाके के साथ पूछा—“अरे भागवान , मैं तुमको कॉल कहाँ से कर रहा हूँ”? पत्नी ने कुछ देर सोचा तो उसे समझ में आया कि मैं उससे मज़ाक कर रहा था । उसकी हंसी रोके न रुकी । मेरे घर पहुंचने पर उसे फिर जब याद आया कि मैंने उसको कैसे उल्लू बनाया तो फिर उसकी हंसी पाँच मिनट तक चलती रही । अंत में मुस्कुराते हुए बोली-“कल से दो दिन तक तुम खाना बनाओगे, यह तुम्हारी सजा है”। मुझे तो लेने के देने पड़ गए पर ऐसी सज़ा भगवान सब को दे।

—- राम बजाज

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