कहत कबीर ४२

कबीरदासजी संत कहे जाते हैं, पर इनके विचारों और रचनाओं का क्षेत्र केवल धर्म, अध्यात्म, चिंतन और भजन नहीं है। उन्होंने सांसारिक जीवन — व्यक्ति के चरित्र और व्यवहार; समाज की प्रचलित प्रथाओं, व्यवहारों और अंधविश्वासों; समाज में फैले ऊँच-नीच के भाव; जाति प्रथा की बुराइयों; सभी धर्म-संप्रदायों के व्यवहार में आए हुए अंधविश्वासों तथा पाखण्डों आदि — पर भी गहरा विचार किया है और अपनी रचनाओं में उन पर करारी टिप्पणियाँ भी की हैं। उनके मत में ये वे बुराइयाँ हैं जो समाज की सुख-शांति, सेहत और ख़ुशहाली के रास्ते में बाधा पैदा करती हैं कबीरदास जी के दोहों तथा अन्य रचनाओं को सही सही समझ पाने के लिए हमें इन सभी बातों को ध्यान में रखना चाहिए।

— कुसुम बांठिया

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बोली एक अनमोल है, जो कोई बोले जानि ।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि ।।

कबीरदास जी ने समाज में वाणी या बोलने के महत्व पर बहुत बल दिया है । इस दोहे में भी वे बोलने को ‘अनमोल’ बतलाते हुए बोलचाल में सावधानी और समझदारी बरतने की सलाह देते हैं । बिना सोच विचार के बोली गई बात ग़लत, कड़वी, औरों को दुख पहुँचाने वाली, रिश्तों में दरार डालनेवाली या बोलनेवाले के चरित्र का ग़लत परिचय देनेवाली हो सकती है । इसीलिए कबीर कहते हैं,कुछ भी बोलने के पहले उसे हृदय के तराजू में तोल लेना, अर्थात उसके अर्थ और प्रभाव पर भली भाँति विचार कर लेना चाहिए ताकि उसका कोई भी ग़लत प्रभाव न पड़े ।

अंधे मिलि हाथी छुआ, अपने अपने ग्यान ।
अपनी अपनी सब कहै, किसको दीजै कानि ।।

अधिकतर मनुष्य अपने सीमित ज्ञान के कारण किसी भी सत्य का कोई एक पक्ष ही देख – समझ पाते हैं । इस अधूरे ज्ञान को ही पूरा सत्य मानकर वे उसी भ्रामक ज्ञान को प्रचारित करते हैं । इस तथ्य को कबीरदास जी अंधों और हाथी के उदाहरण से समझाते हैं । चार अंधे व्यक्तियों को एक हाथी के पास लाकर, हाथी को छूकर उसकी जानकारी लेने को कहा गया । सामने खड़े व्यक्ति के हाथ में हाथी की सूँड़ आई । उसने बताया, हाथी अजगर जैसा लंबा और लचीला होता है । जिसके हाथ में हाथी के कान आए, उसे हाथी सूपड़े जैसा, जिसके हाथ में हाथी का पाँव आया, उसे हाथी खंभे जैसा और जिसके हाथ में पूँछ आई,उसे हाथी रस्सी जैसा लगा। कबीर के अनुसार, संसारी लोग भी किसी सत्य को उसकी पूर्णता में नहीं देख पाते और उस अधूरी जानकारी को ही पूरा ज्ञान समझ बैठते हैं । ऐसे अधूरे ज्ञानियों की बातों पर ध्यान ही नहीं देना चाहिए ।

  • कहत कबीर ०३

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  • कहत कबीर ०४

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    यह दोहे श्री अनूप जलोटा के गाये हुए “कबीर दोहे” की धुन पर सजते हैं Ego को न बढ़ाइए, Ego में है दोष  जो Ego को कम करे, उसे मिले संतोष मानुष ऐसा चाहिए, प्रेम से हो भरपूर सेवा सब की जो करे, रहे अहम् से दूर  “कबिरा” नगरी प्रेम की, उसमे तेरा वास  उस नगरी के द्वार पर, लिखा है “कर विश्वास” — राम बजाज Image Credits: https://www.tentaran.com/happy-kabir-das-jayanti-wishes-status-images/

पद्य (Poetry)

Dear Rain

My love, my heart whispers to you,In your gentle drops, my soul renews.You bring a smile, a soft delight,Farmers’ hearts rejoice, with hope so bright.

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