कहत कबीर ३७

कबीरदासजी संत कहे जाते हैं, पर इनके विचारों और रचनाओं का क्षेत्र केवल धर्म, अध्यात्म, चिंतन और भजन नहीं है। उन्होंने सांसारिक जीवन — व्यक्ति के चरित्र और व्यवहार; समाज की प्रचलित प्रथाओं, व्यवहारों और अंधविश्वासों; समाज में फैले ऊँच-नीच के भाव; जाति प्रथा की बुराइयों; सभी धर्म-संप्रदायों के व्यवहार में आए हुए अंधविश्वासों तथा पाखण्डों आदि — पर भी गहरा विचार किया है और अपनी रचनाओं में उन पर करारी टिप्पणियाँ भी की हैं। उनके मत में ये वे बुराइयाँ हैं जो समाज की सुख-शांति, सेहत और ख़ुशहाली के रास्ते में बाधा पैदा करती हैं कबीरदास जी के दोहों तथा अन्य रचनाओं को सही सही समझ पाने के लिए हमें इन सभी बातों को ध्यान में रखना चाहिए।

— कुसुम बांठिया

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तू मत जाने बावरै, मेरा है सब कोय ।
पिंड प्रान से बँधि रहा, सो अपना नहिं होय ।।

कबीरदास जी ने परम ज्ञान अर्थात सिद्धि प्राप्ति के लिए गुरु का मार्गदर्शन अपरिहार्य (indispensable) माना है । जब गुरु ज्ञान का मार्ग दिखलाता है तभी साधक शिष्य को साधना का स्वरूप भी समझ में आता है और शीघ्र ही परम सिद्धि भी मिलती है । मार्ग दिखलाने वाला गुरु न मिले तो व्यक्ति करोड़ों जन्म लेकर भी सिद्धि पाने में सफल नहीं हो सकता । कबीरदास जी के अनुसार सच्चा गुरु ज़रूरतमंदों पर दया करने वाला होता है । उसका अपना कोई स्वार्थ नहीं होता । किसी में ज्ञान प्राप्ति की सच्ची लगन होती है तो सतगुरु स्वयं ही करुणा करके उसे राह दिखलाने पहुँच जाते हैं और उनकी सहायता से वह जल्दी और सहजता से अपने लक्ष्य को पा लेता है ।

आब गई, आदर गया, नैनन गया सनेह ।।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देह ।।

कबीरदास जी जहाँ दान देने की सराहना करते हैं, वहीं वे दान माँगने या याचक होने को उचित नहीं ठहराते । इससे मनुष्य न केवल अपने को हीन बनाता है बल्कि औरों के साथ उसके रिश्तों को भी प्रभावित करता है । जैसे ही वह दान माँगता है, समाज और संबंधों में उसकी प्रतिष्ठा कम हो जाती है, लोगों के मन से उसका आदर जाता रहता है, और उसके प्रति प्रेमभाव रखनेवाले लोगों में भी प्रेम के स्थान पर रुखाई आ जाती है ।

  • कहत कबीर ०३

    ऊँचे पानी ना टिकै, नीचे ही ठहराय । // बुरा जो देखन मैं चला , बुरा न मिलिया कोय । ऊँचे पानी ना टिकै, नीचे ही ठहराय//बुरा जो देखन मैं चला , बुरा न मिलिया कोय// कबीरदास जी संत कहे जाते हैं, पर इनके विचारों और रचनाओं का क्षेत्र केवल धर्म, अध्यात्म, चिंतन और भजन…

  • कहत कबीर ०४

    बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर । // काम क्रोध मद लोभ की, जब लग घट में खानि । कबीरदास जी संत कहे जाते हैं, पर इनके विचारों और रचनाओं का क्षेत्र केवल धर्म, अध्यात्म, चिंतन और भजन नहीं है। उन्होंने सांसारिक जीवन — व्यक्ति के चरित्र और व्यवहार; समाज की प्रचलित प्रथाओं,…

  • कबीर दास जी से प्रेरित कुछ दोहे — १

    यह दोहे श्री अनूप जलोटा के गाये हुए “कबीर दोहे” की धुन पर सजते हैं Ego को न बढ़ाइए, Ego में है दोष  जो Ego को कम करे, उसे मिले संतोष मानुष ऐसा चाहिए, प्रेम से हो भरपूर सेवा सब की जो करे, रहे अहम् से दूर  “कबिरा” नगरी प्रेम की, उसमे तेरा वास  उस नगरी के द्वार पर, लिखा है “कर विश्वास” — राम बजाज Image Credits: https://www.tentaran.com/happy-kabir-das-jayanti-wishes-status-images/

पद्य (Poetry)

Dear Rain

My love, my heart whispers to you,In your gentle drops, my soul renews.You bring a smile, a soft delight,Farmers’ hearts rejoice, with hope so bright.

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गद्य (Prose)

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