कहत कबीर ३१

कबीरदासजी संत कहे जाते हैं, पर इनके विचारों और रचनाओं का क्षेत्र केवल धर्म, अध्यात्म, चिंतन और भजन नहीं है। उन्होंने सांसारिक जीवन — व्यक्ति के चरित्र और व्यवहार; समाज की प्रचलित प्रथाओं, व्यवहारों और अंधविश्वासों; समाज में फैले ऊँच-नीच के भाव; जाति प्रथा की बुराइयों; सभी धर्म-संप्रदायों के व्यवहार में आए हुए अंधविश्वासों तथा पाखण्डों आदि — पर भी गहरा विचार किया है और अपनी रचनाओं में उन पर करारी टिप्पणियाँ भी की हैं। उनके मत में ये वे बुराइयाँ हैं जो समाज की सुख-शांति, सेहत और ख़ुशहाली के रास्ते में बाधा पैदा करती हैं कबीरदास जी के दोहों तथा अन्य रचनाओं को सही सही समझ पाने के लिए हमें इन सभी बातों को ध्यान में रखना चाहिए।

— कुसुम बांठिया

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चिड़ी चोंच भरि लै गई, नदी घट्या ना नीर ।
दान दिए धन ना घटै, कहि गए दास कबीर ।।

कबीरदास जी उन सभी मूल्यों को बढ़ावा देते हैं जो समाज में सुख शांति तथा सौमनस्य बढ़ाते हैं । इस दोहे में वे दान की प्रेरणा दे रहे हैं क्योंकि इससे समाज में मानवता और समानता का प्रसार होता है । वे कहते हैं, नदी में बहुत पानी होता है । अगर कोई चिड़िया चोंच भर पानी ले जाती है तो उसकी प्यास तो बुझती है पर नदी का पानी कम नहीं होता । इसी प्रकार, जिनके पास धन है, वे अगर औरों की सहायता के लिए उसमें से कुछ ख़र्च कर भी दें तो दूसरों का भला होगा किंतु उन्हें कोई कमी नहीं होगी क्योंकि दान जैसा पुण्य कार्य करने से धन कम नहीं होता ।

पानी बाढ़ै नाव में, घर में बाढ़ै दाम ।
दोऊ हाथ उलीचिये, यही सुजन को काम ।।

इस दोहे में भी कबीरदास जी दान करने की प्रेरणा दे रहे हैं । वे कहते हैं , जैसे नाव में पानी ज़्यादा भरने लगता है तो उसे तुरंत उलीचना — निकालकर बाहर फेंकना ज़रूरी हो जाता है (वरना उसके बोझ से नाव के डूबने का ख़तरा रहता है) । इसी प्रकार यदि घर में धन संपत्ति की बहुतायत हो जाती है तो उसे भी दान करने में खुलकर ख़र्च कर देना चाहिए । कबीरदास जी का आशय है, यदि घर में धन संपत्ति बहुत अधिक हो जाती है तो मनुष्य भोग विलास में पड़कर सही मार्ग से भटक जाता है । इसलिए उसे चाहिए कि अतिरिक्त संपत्ति को तुरंत दान आदि अच्छे कार्यों में ख़र्च कर दे ।

  • कहत कबीर ०३

    ऊँचे पानी ना टिकै, नीचे ही ठहराय । // बुरा जो देखन मैं चला , बुरा न मिलिया कोय ।…

  • कहत कबीर ०४

    बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर । // काम क्रोध मद लोभ की, जब लग घट में खानि…

  • कहत कबीर ०१

    दोस पराए देख करि, चलत हसन्त हसन्त । // दीन, गरीबी, बंदगी, सब सों आदर भाव । कबीरदास जी संत…

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