दिल और दिमाग़

दिल और दिमाग़

जब दिल और दिमाग़ में समन्वय न हो तो
न दिल सम्भलता है न दिमाग़ को चैन है
दिल प्यार ढूँढता है, दिमाग़ वैभव के पीछे है
दिल सुकून ढूँढता है, दिमाग शोर में शामिल है
मैं क्या करूँ एक ही मेरा दिल है, एक ही दिमाग़ है

दिल रोना चाहता है, दिमाग़ बहस करता है
दिल मय में झूमा है, दिमाग़ सुन्न सा है
दिल दुनिया की सैर में है, दिमाग रोक लगाता है
दिल जी भर खाना चाहता है, दिमाग़ जम सा जाता है

हे अल्लाह क्या करूँ, दिल को दिमाग़ से समझाऊँ या दिमाग़ को दिल से
ना दिल से जुदा रह सकता हूँ, न दिमाग़ को त्याग सकता हूँ
न दिल को रुला सकता हूँ, न दिमाग़ को रूठा सकता हूँ
न दिल से खिलवाड़ कर सकता हूँ, ना दिमाग़ को ठेस लगा सकताहूँ
दिल से प्यार करूँ या दिमाग़ के साथ करूँ,

क्योंकि सिर्फ़ दिल और दिमाग़ के समन्वय में ही जन्नत है

— राम बजाज

यादों के साये (Nostalgia)

मुट्ठी में दुअन्नी

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पद्य (Poetry)

Dear Rain

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गद्य (Prose)

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शुरुआत में जाइए मेरी अज्जी और मैं (१/२१) स्त्री परिवार की धुरी होती है; परिवार समाज की बुनियादी इकाई होता है; समाज मिलकर राष्ट्र को

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