दिल और दिमाग़
जब दिल और दिमाग़ में समन्वय न हो तो
न दिल सम्भलता है न दिमाग़ को चैन है
दिल प्यार ढूँढता है, दिमाग़ वैभव के पीछे है
दिल सुकून ढूँढता है, दिमाग शोर में शामिल है
मैं क्या करूँ एक ही मेरा दिल है, एक ही दिमाग़ है
दिल रोना चाहता है, दिमाग़ बहस करता है
दिल मय में झूमा है, दिमाग़ सुन्न सा है
दिल दुनिया की सैर में है, दिमाग रोक लगाता है
दिल जी भर खाना चाहता है, दिमाग़ जम सा जाता है
हे अल्लाह क्या करूँ, दिल को दिमाग़ से समझाऊँ या दिमाग़ को दिल से
ना दिल से जुदा रह सकता हूँ, न दिमाग़ को त्याग सकता हूँ
न दिल को रुला सकता हूँ, न दिमाग़ को रूठा सकता हूँ
न दिल से खिलवाड़ कर सकता हूँ, ना दिमाग़ को ठेस लगा सकताहूँ
दिल से प्यार करूँ या दिमाग़ के साथ करूँ,
क्योंकि सिर्फ़ दिल और दिमाग़ के समन्वय में ही जन्नत है
— राम बजाज