दाल खाये सैयां हमार

(पान खाये सैयां हमार की तर्ज़ पर )

दाल खाये सैयां हमारो
उसमें डाले वो, ठर्रे का पाव
हाय हाय अब क्या करूँ मैं,
रात दिन मैं तो, हूँ बेहाल
दाल खाएँ —

रात में जब वो, आकर सोए,
शोर करे वो, दोनो तरफ़ से
रात में जब वो, आकर सोए,
शोर करे वो, दोनो तरफ़ से
आ आ आ
बापू, अम्मा, बच्चे रोयें
कुछ तो करो री, हम को बचाओ
हम को बचाओ,
दाल खाये सैयां हमारो
होय-होय
उसमें डाले वो, ठर्रे का पाव
हाय हाय अब क्या करूँ मैं,
रात दिन मैं तो, हूँ बेहाल
दाल खाये सैयां हमारो

— राम बजाज

यादों के साये (Nostalgia)

मुट्ठी में दुअन्नी

बचपन में हम एक छोटी सी औद्योगिक बसाहट में रहते थे – तीन बँगले, ८-१० क्वार्टर, मजदूरों की बस्ती, एक डिस्पेंसरी और बैरकनुमा ऑफिसों के

Read More »
पद्य (Poetry)

Dear Rain

My love, my heart whispers to you,In your gentle drops, my soul renews.You bring a smile, a soft delight,Farmers’ hearts rejoice, with hope so bright.

Read More »
गद्य (Prose)

मेरी अज्जी और मैं (९/२१)

शुरुआत में जाइए मेरी अज्जी और मैं (१/२१) स्त्री परिवार की धुरी होती है; परिवार समाज की बुनियादी इकाई होता है; समाज मिलकर राष्ट्र को

Read More »