सुशीला की कहानी (३)

सुशीला की कहानी (३)

राम बजाज

दो वर्षों की कड़ी मेहनत और लगाव से पढ़ाई करने के बाद, अक्षय ने २०१७ में UPMSP (उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद्) से इंटरमीडिएट (१२ वीं) की परीक्षा पास कर ली । उसे Biology और Math में डिस्टिंक्शन मिले और पूरे प्रान्त में ५८ वां स्थान प्राप्त हुआ । ये एक बहुत ही बड़ी उपलब्धि थी । सब लोग प्रसन्न थे और सब ने बाधाइयों के साथ उसकी प्रशंसा की, लेकिन अक्षय का काम अभी पूरा नहीं हुआ था । उसे अब ये निश्चय करना था कि वह डॉक्टर बने या इंजिनियर । उसकी आस्था Biology और Math दोनों में थी और दोनों में उसे डिस्टिंक्शन मिला था । इसलिए यह निर्णय करना और भी कठिन हो गया था । अक्षय को पूरा ज्ञान था की उसे Medical School की एडमिशन के लिए NEET की परीक्षा देनी होगी और Engineering के लिए JEE की । इसलिए उसने पहले से ही दोनों की तैयारी की हुई थी । सौभाग्यवश, वह दोनों में सफल हुआ । NEET में उसे ६२६ अंक और १०५६ स्थान मिला और JEE में उसे २५५वां स्थान प्राप्त हुआ । इन नतीजों के बल पर उसे IIT में एडमिशन मिल सकता था और वह किसी भी Medical School में जा सकता था । अक्षय अब बड़ी उथल -पुथल और तनाव में फँस गया । उसे छात्रवृत्ति मिलने की भी बड़ी सम्भावना थी, इसलिए उसे आर्थिक स्थिति के बारे में चिंता करने की आवश्यकता नहीं थी । वह IIT और Medical School दोनों में साक्षात्कार के लिए गया और उसे ऐसा लगा कि वह दोनों में सफलता पायेगा । अब तो उसे बड़ी चिंता और बैचैनी हुई, लेकिन उसे छः सप्ताह तक इंतज़ार करना था । उसके बाद उसे पता लगा की वह सचमुच दोनों में सफल हुआ तो उसे और परिवार वालों को बड़ी ही प्रसन्नता हुई और उससे पूछने लगे कि उसका क्या निर्णय है । यह सवाल उसके लिए बड़ा कष्टदायी था क्योंकि उसकी समझ में नहीं आ रहा था की वह क्या कहे । अपने मित्रों, रिश्तेदारों और प्रोफेसर की बातें सुनने के बाद भी अपने मन की बात को वह किसी से नहीं कह पा रहा था । उसका मस्तिष्क कह रहा था वह IIT जाये जब कि मन और हृदय बोलता था की वह Medical School जाये । इस का सबसे बड़ा कारण था कि उसे अपनी माँ की बड़ी चिंता थी । IIT के लिए इलाहबाद से दूर जाना और hostel में रह कर पढ़ाई करनी जरूरी था । इसके लिए चार वर्षो तक माँ (और भाई) को अकेले छोड़ना पड़ेगा उसे सही नहीं, दर्दनाक लग रहा था । उसकी माँ ने समझाया कि उसे उनकी चिंता किए बिना अपने भविष्य को प्राथमिकता देनी चाहिए । वे लोग चार साल किसी तरह रह लेंगे । लेकिन मानसिक कठिनायोंसे गुज़र कर और रातों की नीदें खोने बाद उसने अपनी माँ को अपने भविष्य से अधिक महत्व देकर यह निश्चित किया कि वह Motilal Nehru Medical College, इलाहाबाद, जो उसके घर से केवल छः किलोमीटर दूर था, में पढ़ाई करेगा । वैसे भी डॉक्टर बनना भी तो एक प्रतिष्ठित, समाज-सेवा और दुःख – दर्द दूर करने वाला एक पवित्र पेशा है और उसमे व्यस्त रह कर उसे संतुष्टि मिलेगी । इसके साथ ही घर पर रहने से उसे माँ और भाई का सान्निध्य और प्रेम भी प्रपट होगा । सत्रह वर्ष की कोमल उम्र में ऐसे निर्णय लेना बड़े ही साहस, सद्बुद्धि और परिपक्वता के चिन्ह थे । अक्षय की माँ ने उसे उसे सम्पूर्ण समर्थन दिया और अक्षय के उत्तम गुणों से तो वारी-वारी हो गयी । उसे लगा कि जैसे श्याम लाल के सारे संस्कार और आदर्श उसमें हैं । उसे अपने पति की बड़ी याद आयी और सोचा कि अगर श्याम लाल वहां होते तो अपने बेटे की सफलता ही नहीं उसके व्यवहार और प्रेम से भाव-विभोर हो आशीर्वादों औरआंसुओं से उसकी झोली भर देते । अक्षय भी इस समय अपने पिता की कमी को अत्यधिक अनुभव कर रहा था और थोड़ी देर के लिए उनके स्पर्श और आलिंगन के काल्पनिक विचारों में खो गया । जब मित्रों और जान पहचान के लोगों को इस खबर का पता लगा तो कई तरह की प्रतिक्रियाएँ हुईं । कुछ लोगों ने तो बड़ी सराहना की कि उसने अपनी माँ की ख़ुशी के लिए अपने अरमानों का बलिदान कर दिया और कुछ लोग कहने लगे कि उसने बड़ा ही गलत कदम उठाया है । उनके अनुसार, IIT में एडमिशन, जिसके लिए लोग अपना तन, मन, धन और मेहनत लगा के प्रयास करते है, और कुछ ही लोग सफल होते हैं, उसे ठुकरा रहा अक्षय ठीक नहीं कर रहा है । वह अभी बच्चा है और नादान है और परिपक्व नहीं है । इतना सब सुनने के बाद भी अक्षय अपने निर्णय में अटल रहा । उसे अपने पर पूरा विश्वास था और उसे अपनी माँ का पूरा समर्थन था । उसे इनके अतिरिक्त उसे किसी की सोच की चिंता नहीं थी ।

जब सुशीला के दोनों वयस्क बच्चे Medical Collegeऔर NIIT में अपनी पूरी लगन के साथ पढ़ाईमें व्यस्त हो गए तो सुशीला को काम करने के बाद भी थोड़ा समय बचने लगा । उसे नौकरी में बैंक ने २०१८ में promotion भी दिया था, जिससे उसके घर की आर्थिक दशा सुधर गयी थी । उसने बच्चों के सामने प्रस्ताव रखा की क्यों न वे लोग अपने घर का सुधार करें या फिर एक नया घर ले लें । अक्षय और अरावल को ये प्रस्ताव बहुत ही अच्छा लगा लेकिन विकल्पों को तय और उनमे से चयन वे अनिश्चित थे । कुछ दिनों के बाद जब ये विषय फिर से उठा तो माँ ने कहा की वह इस मोहल्ले को छोड़ कर कहीं और जाने के पक्ष में नहीं थी । उसके पड़ोसियों और आसपास के लोगों ने उसे वर्षों से जो सहारा, सहानुभूति और विश्वास दिया है, उसके बिने उसका जीवन जीना दूभर हो जाता । वह तो उसके भगवान थे और परिवार से भी अधिक प्रिय थे और उनके बिना रहना दूभर हो जायेगा । बच्चों ने अपनी माँ की सराहना की और वह उससे पूरी तरह सहमत थे । वे भी तो अपने मित्रों से दूर नहीं रहना चाहते थे । अंत में सुशीला ने बच्चों को बताया की वह मकान मालिक से बात करेगी कि, अगर अब उन्हें मकान बेचना है तो सुशीला खरीदने को तैयार है ।

इस वार्तालाप से कुछ दिन पहले एक सुखद घटना घटी थी, जिसके बारे में माँ बच्चों को, उनकी व्यस्तता के कारण, नही बता सकी थी । शायद आपको सिमरन की याद हो? सिमरन ने अपनी fashion design की ट्रेनिंग के पश्चात अपने पिता की बड़ी कपड़े की दुकान को बढ़ा कर एक Modern Boutique खोल लिया था और उसको किसी विश्वनीय और कर्मठ व्यक्ति की बड़ी आवश्कयता थी जो fashion के बारे में जानता हो और ग्राहकों के सिवा designers से भी बातचीत कर सके । सिमरन को ऐसा सहायक, बहुत ढूंढने के बाद भी नहीं मिल रहा था । तभी अचानक उसे सुशीला की याद आयी । उसने सोचा की सुशीला तो आदर्श महिला है जो पूरी तरह उसका साथ देकर नए व्यवसाय में चार चाँद लगा सकती है । उसे तो accounting का भी ज्ञान है, सिलाई का भी ज्ञान है और वह एक अच्छी डिज़ाइनर भी है । सुशीला के जैसा अच्छा कोई उम्मीदवार उसे मिल ही नहीं सकता था । उसने सुशीला से बात की और यह भी प्रस्ताव रखा कि वह सुशीला को २०% का पार्टनर भी बनाएगी । यह प्रस्ताव तो सुशीला को बहुत अच्छा लगा लेकिन थोड़ा सोचने के बाद उसे लगा की जल्दी में कोई भी काम नहीं करना चाहिये । सुशीला ने बच्चों से भी बात की और अंत में ये तय किया कि वह अपनी इलाहबाद बैंक की नौकरी नहीं छोड़ेगी और सिमरन को शाम को २-३ घंटे सहयता करेगी । सिमरन ने भी बात मान ली क्यों कि उसने सोचा उसे थोड़ी सहायता तो मिलेगी ही और आगे चल कर उसे और सुशीला को अच्छा लगा तो शायद वह नौकरी छोड़ पूरी तरह उसके साथ जुड़ जाएगी।

लेकिन विधि का विधान तो कुछ और ही था । ये २०२० का समय था और अप्रैल के महीने में Covid की महामारी ने अपना विस्तार करना आरंभ किया और भारत को भी जल्द ही अपनी चपेट में ले लिया। सब जगह लोग आगे पीछे, दायें बाएं, इसके शिकार हुए । कई परिवारों ने अपने प्रिय लोगों को खो दिया । खाने-पीने की परवाह न कर सब अपनी जान को बचने के लिए mask लगा कर, और घरों में छुप कर अपनी रक्षा की चिंता में कई लोग अपना मानसिक संतुलन खो बैठे । सरकार जिस तरह और जितनी तेज़ी से और पूरी गंभीरता से शांति रखने और सहायता का वितरण करने में लगी थी वह पूरे भारत में अप्रत्याशित था और कभी नहीं देखा गया था । सरकार ने ये निर्णय लिया कि पूरे शहर और प्रान्तों में lockdown करना बहुत ज़रूरी है और कई दिनों तक लोगों को चेतावनी दी गयी कि वे घर से न निकलें । कोई इसका उल्लंघन न करे इसलिए सड़कों पर पुलिस के पहरे लगवा दिए । उनको खाने पीने के पदार्थ वितरण किये गए और पुलिस के पहरे के अन्दर सब लोगों को घर में रहने के लिए मजबूर किया, क्योंकि इसके बिना और कोई चारा भी तो नहीं था ।

यह तो स्वाभाविक है कि सारे लोगों ने भविष्य की जो योजनाएं बनाई थी वह जीवित रहने की इच्छा के सामने निछावर हो गयीं और किसी को भी इसकी चिंता नहीं थी । चिंता थी तो यह कि कैसे अपने, और अपने परिवार को, जब तक इस महामारी का अंत हो, सुरक्षित रखें । जीवन की इस उथल-पुथल में सुशीला की बैंक कभी खुलती, कभी बंद हो जाती और कभी-कभी थोड़ा काम वह online करती । लेकिन गोपनीयता की वजह से बैंक के अभिलेख (records) गुप्त ही रखे जाते इसलिए थोड़ा काम ही online किया जा सकता था ।

उधर अक्षय Medical College के चौथे वर्ष में पंहुचने वाला था, लेकिन उसकी पढ़ाई विचलित थी — कॉलेज कभी खुलता तो , कभी बंद हो जाता । लेकिन Medical colleges ने ये निर्णय लिया कि क्यों न आखिरी वर्ष के विद्यार्थियों को अब तक जो शिक्षा मिली है उसका सदुपयोग किया जाये । दूसरे, डॉक्टरों और अस्पतालों में सहायकों की बहुत ज़रुरत थी । इसलिये, कुछ और मेधावी छात्रों के साथ अक्षय को भी अस्पताल में बीमार और महामारी से पीड़ित लोगों की सेवा की duty दे दी गयी । वह emergency room में दूसरे डॉक्टरों की सहायता करता । यह कर के उसे जो शिक्षा मिलती वह अवर्णनीय थी । तनाव की स्थिति में काम करने की और कई भिन्न-भिन्न समस्याओं से जूझने की क्षमता को निखारने का इससे अधिक अवसर मिलना बहुत ही मुश्किल है । अक्षय कभी कभी १५-१६ घंटे लगातार काम करने के बाद थोड़ी सी नींद निकाल फिर वापिस अस्पताल चला जाता । सुशीला और अरावल को उसकी चिंता होती लेकिन उनको पता था की अक्षय अपने को संभाल कर लोक सेवा कर रहा है । उसमें उसको जो संतोष मिलता है उसके सामने उसके बारे में चिंता करना एक तुच्छ भावना है। वे अपनी तरफ से उसकी जो सहायता कर सकते थे, करते ।

अरावल और सुशीला भी समाज सेवा के योगदान में पीछे नहीं थे । सुशीला आस-पास के लोगों, जिसमें कई लोग वृद्ध भी थे, की सेवा करती, उनके खाने-पीने का इंतजाम करने के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य के बारे में खबर रखती क्योंकि वृद्ध लोग कभी-कभी दूसरों को परेशान न करने की इच्छा से कुछ बोलते नहीं और कठिनाइयां और दर्द सह लेते है, जो आगे चल कर जान-लेवा बन सकते है । इसके अतिरिक्त, इस महामारी के दिनों में तो ये विचार और व्यवहार दूसरे लोगों के लिए भी घातक हो सकते हैं ।

अरावल की पढ़ाई में भी महामारी ने बड़े विघ्न उत्पन्न किये है । उसके college ने online शिक्षा की व्यवस्था की है लेकिन उसमे भी कई कमियां हैं और किसी तरह से काम चल रहा है । इससे उसे जो समय मिला उसमे उसने online computer coding का र्कोस लिया है । वह उसको बड़ा ही रोचक लगा और साथ में भविष्य में भी काम आयेगा । इस महामारी के दिनों में अरावल लोगों की मदद करने भी पीछे नहीं है । वह पास-पड़ोस के लोगों में खाद्य-सामग्री के वितरण में बहुत योगदान देता है और लोग उसके बड़े कृतज्ञ है । इसके अतिरिक्त अपने computer के ज्ञान का उपयोग कर वह computer इस्तेमाल करने में असमर्थ लोगों के लिए online की खरीदारी और उनके ’डाक्टरों के अपॉइंटमेंटों करने में उनकी सहायता करता है । इन सब कामों के करते उसे कई लोगों से बातचीत होती, जिसमे वह ज़रूर याद रखता है की लोगों को बताये कि वे अफवाहों से दूर रहें और social media की खबरों से भ्रमित न हों, क्योंकि आजकल महामारी के बहाने लेकर समाज के कई लोग उनका फायदा उठा कर अपनी जेबें भरते हैं ।

सिमरन के सपने भी अधूरे रह गए हैं । उसको और उसके पिता को तो अपना व्यापार कई महीनों तक बंद रखना पड़ा और सिमरन ने अपना एम्पोरियम बनाना विलंबित कर दिया है और उसने सुशीला से क्षमा मांगी कि जब तक महामारी नहीं जाती वह मजबूर है । सुशीला तो इतनी सधी हुई महिला है और परिस्थितियों से ज्ञातक है, उसने कहा कि वह सब समझती है और सिमरन को कोई चिंता नहीं करनी चाहिए। वह अपने और परिवार के ख्याल रखने को प्राथमिकता दे ।

इस महामारी के जाने का सब बेसब्री से इंतज़ार कर रहे है । २०२१ के कुछ आरंभ के महीनों लगता था संसार ने बहुत कुछ सहने के पश्चात वैज्ञानिकों के अथक प्रयत्न हुए और अब वैक्सीन के बाद शायद इस दुर्भाग्य से राहत मिले, लेकिन फिर Delta mutation ने अपना कुरूप मुंह दिखाया और उससे थोड़ी सी ही सामान्यता का इंतजार करते समय फिर Omicron mutation ने आकर दबोचा है । आशा है ये भी प्रस्थान कर जायेगा, क्योंकि जो आता है उसको तो जाना ही है ।

तो, यह थी एक साहस, त्याग और स्वाभिमान भरे परिवार की साधारण कहानी

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https://commons.wikimedia.org/wiki/File:2019_Feb_04_-_Kumbh_Mela_-_Mauni_Amavasya_Crowd_13.jpg

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