(“हँसते जख्म” के गाने आज सोचा तो आँसू भर आए की तर्ज़ पर )
मधुमेह से प्रभावित (Diabetic) व्यक्तियों के लिए
आज सोचा तो आँसू भर आए
मुद्दतें हो गयीं मीठा खाए
रोज़ रोज़ मुझे ये तड़पाए
नज़रों से और ख़ुशबू से रुलाए
हाथ जैसे उठे उसको खाने
होश और हवास डगमगाए
एक आख़िरी ख़्वाहिश है मेरी
मुझको सपनों में आ ना सताए
— राम बजाज