तो मज़ा नहीं
गर ज़िंदगी में ग़म ही ग़म
आँखें नम ही नम हों
तो मज़ा नहीं
ग़र ज़िन्दगी में मौजां इ मौजां हों
होठों पर मुस्कान ही मुस्कान हो
तो मज़ा नहीं
मुसर्रत — आनद, ख़ुशी
ज़िंदगी में भी दर्द हो,
मुसर्रत हो, वरना ज़िंदगी का
तो मज़ा नहीं
कमसिन — अवयस्क
लबरेज़ — लबालब भरा हुआ
साक़ी अगर कमसिन ना हो,
बोतल गर लबराज ना हो
तो मज़ा नहीं
विसाल — मिलन, मिलाप
दर्दे दिल को उनका अरसों से इंतज़ार था,
विसाले गर ना हो
तो मज़ा नहीं
साक़ी की नज़र हम पर नहीं
ग़ैर के दामन पर हो
तो मज़ा नहीं
खुदा की मुनाजात में गर रूह का दर्द ना हो,
दिल की कशिश न हो
तो मज़ा नहीं
मुनाजात — ईश – प्रार्थना
रहिमन डोरी प्रेम की टूटे
और फिर बंध भी जाए
तो मज़ा नहीं
दर्दे दिल की क़सम, गमग़ीं हैं हम
क्योंकि ज़िंदगी में अब
तो मज़ा नहीं
खुदा ख़ुद बंदे पे महर करे,
गर नाचीज़ खुदा को बुलाये
तो मज़ा नहीं
क़यामत आने का हमें इंतज़ार है,
क्योंकि ज़िंदगी में
तो मज़ा नहीं
रूह का तो रूह से रिश्ता रहे,
रूह और दिल के रिश्ते में
तो मज़ा नहीं
ज़िन्दगी को पहेली ही रहने दो,
ग़र तर्जुमा हो जाये
तो मज़ा नहीं
तर्जुमा — अनुवाद
दर्द को दर्द ही रहने दो,
ग़र इस ग़म को नकारा
तो मज़ा नहीं
मज़े की बात यह है,
ग़र मज़े का एहसास हो जाये,
तो मज़ा नहीं
सिर्फ मंज़िलें हासिल हों
गर रूह का अहसास न हो
तो मज़ा नहीं
— राम बजाज