दोस्ती की नज़र
कह ना पायेंगे कभी एहसान तेरा, मेरे दोस्त
शुक्रिया कहने को निकले, आँख नम सी हो गयी
सूरज की गर्मी से पिघले, जब मिले इक मोड़ पर
तेरे आने से भला क्यूँ, धूप ठंडी हो गयी
हाथ मेरा, तेरे संग, जब भी उठा फरियाद में
मुस्कुरा के हँस दिया “वो”, मेहरबानी हो गयी
हमने जन्नत की झलक, देखी है सपने में कभी
तू जहाँ बैठा मिला, जन्नत ही जन्नत हो गयी
हमने “जग वाले” की सूरत, अब तलक देखी ना थी
आँखें मूँदे “उसको” खोजा, तेरी सूरत हो गयी
गर ख़ुदा भी साथ माँगे, हम तो कह देंगे उसे
दोस्त बनके गर मिलो, समझो मुहब्बत हो गयी
ज़िन्दगी के पन्ने देखे, कुछ हँसी थे कुछ थे ग़म
दोस्ती के रंग से जैसे, बेहतर कहानी हो गयी
— डा. रानी कुमार
Image Credit: https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Two_friends_adventure.jpg