यह दोहे श्री अनूप जलोटा के गाये हुए “कबीर दोहे” की धुन पर सजते हैं
Ego को न बढ़ाइए, Ego में है दोष
जो Ego को कम करे, उसे मिले संतोष
मानुष ऐसा चाहिए, प्रेम से हो भरपूर
सेवा सब की जो करे, रहे अहम् से दूर
“कबिरा” नगरी प्रेम की, उसमे तेरा वास
उस नगरी के द्वार पर, लिखा है “कर विश्वास”
— राम बजाज
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