आज सोचा तो आँसू भर आए (१)

(“हँसते जख्म” के गाने आज सोचा तो आँसू भर आए की तर्ज़ पर )

तुमने सोचा कि हम क्यों न रोये
आहें भर बस , यूँ ही गुनगुनाए

धड़कनों ने कहा धड़कनों से
तेज़ ना चल कहीं थम ना जाए

दिल की तड़पन को तुमने ना जाना
हमको दर्दों को आए छुपाना

एक तरफ़ा नहीं प्यार उनका
इस इशारे पे हम शरमाए

(जब) उनकी नज़रें मिलीं नज़रों से
(हम) खुद ही खुद से शर्माए

— राम बजाज

लफ़्ज़ों में क्या रखा है

कहा कुछ तुमने ?– सुना नहीं, दुआ थी या बद्दुआ,  पता नही । हाँ और ना से,  हक़ीक़त बदलते देखी बातों  का अब  मुझे, आसरा नहीं ।

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यादों के साये (Nostalgia)

मुट्ठी में दुअन्नी

बचपन में हम एक छोटी सी औद्योगिक बसाहट में रहते थे – तीन बँगले, ८-१० क्वार्टर, मजदूरों की बस्ती, एक डिस्पेंसरी और बैरकनुमा ऑफिसों के

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