कहत कबीर ४४

कबीरदासजी संत कहे जाते हैं, पर इनके विचारों और रचनाओं का क्षेत्र केवल धर्म, अध्यात्म, चिंतन और भजन नहीं है। उन्होंने सांसारिक जीवन — व्यक्ति के चरित्र और व्यवहार; समाज की प्रचलित प्रथाओं, व्यवहारों और अंधविश्वासों; समाज में फैले ऊँच-नीच के भाव; जाति प्रथा की बुराइयों; सभी धर्म-संप्रदायों के व्यवहार में आए हुए अंधविश्वासों तथा पाखण्डों आदि — पर भी गहरा विचार किया है और अपनी रचनाओं में उन पर करारी टिप्पणियाँ भी की हैं। उनके मत में ये वे बुराइयाँ हैं जो समाज की सुख-शांति, सेहत और ख़ुशहाली के रास्ते में बाधा पैदा करती हैं कबीरदास जी के दोहों तथा अन्य रचनाओं को सही सही समझ पाने के लिए हमें इन सभी बातों को ध्यान में रखना चाहिए।

— कुसुम बांठिया

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जहाँ न जाको गुन लहै, तहाँ न ताको ठाँव ।
धोबी बस के क्या करे, दीगंबर के गाँव ।।

लोक व्यवहार संबंधी इस दोहे में कबीर सलाह देते हैं कि मनुष्य को सदा ऐसे समाज में ही बसना चाहिए जहाँ उसके गुणों और क्षमताओं का उपयोग हो सके। कोई धोबी अगर ऐसे गाँव में जा बसे जहाँ लोग कपड़े ही न पहनते हों, तो उसकी कपड़े धोने की योग्यता तो व्यर्थ होगी ही, उसे जीविका चलाना भी असंभव हो जाएगा । इस तरह उसका दोहरा नुक़सान होगा । गुणी को हमेशा गुणग्राहक के ही आसपास रहना चाहिए ताकि उसके गुण की क़द्र भी हो और उपयोग भी।

हीरा तहाँ न खोलिए, जहँ खोटी है हाट ।
कसि करि बाँधो गाँठरी, उठि करि चालो बाट ।।

इस दोहे में भी कबीरदास जी इससे मिलती जुलती बात ही कह रहे हैं । वे सलाह दे रहे हैं कि जो बाज़ार खोटा हो, अर्थात जहाँ ईमानदारी, श्रेष्ठ सामग्री की परख या लोगों में ऊँचे स्तर के सौदे करने की योग्यता न हो, वहाँ अपना हीरा लोगों को दिखाना ही नहीं चाहिए । उसे पूरी सुरक्षा से सहेजकर उस बाज़ार से निकल आना चाहिए । आशय यह है कि मनुष्य को अपने गुण समझदार, पारखी और गुणग्राहक लोगों के सामने ही प्रकट करने चाहिए ताकि उन्हें उचित सम्मान मिल सके और उनका सही उपयोग भी हो सके । नादान लोगों के सामने उनके प्रदर्शन से उनका अपमान ही होता है और उचित उपयोग भी नहीं हो पाता।
यहाँ हम गुण को ज्ञान के अर्थ में भी ले सकते हैं । ज्ञान भी उन्हीं लोगों को देना चाहिए जिन्हें इसकी क़ीमत मालूम हो और जो इसे आदरपूर्वक ग्रहण कर सकें । मूर्खों के हाथों में इसकी दुर्दशा ही होती है ।

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    यह दोहे श्री अनूप जलोटा के गाये हुए “कबीर दोहे” की धुन पर सजते हैं Ego को न बढ़ाइए, Ego में है दोष  जो Ego को कम करे, उसे मिले संतोष मानुष ऐसा चाहिए, प्रेम से हो भरपूर सेवा सब की जो करे, रहे अहम् से दूर  “कबिरा” नगरी प्रेम की, उसमे तेरा वास  उस नगरी के द्वार पर, लिखा है “कर विश्वास” — राम बजाज Image Credits: https://www.tentaran.com/happy-kabir-das-jayanti-wishes-status-images/

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My love, my heart whispers to you,In your gentle drops, my soul renews.You bring a smile, a soft delight,Farmers’ hearts rejoice, with hope so bright.

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