साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप । ///// आवत गारी एक है , उलटत होय अनेक ।
कबीर संत कहे जाते हैं, पर इनके विचारों और रचनाओं का क्षेत्र केवल धर्म, अध्यात्म, चिंतन और भजन नहीं है। उन्होंने सांसारिक जीवन — व्यक्ति के चरित्र और व्यवहार; समाज की प्रचलित प्रथाओं, व्यवहारों और अंधविश्वासों; समाज में फैले ऊँच-नीच के भाव; जाति प्रथा की बुराइयों; सभी धर्म-संप्रदायों के व्यवहार में आए हुए अंधविश्वासों तथा पाखण्डों आदि — पर भी गहरा विचार किया है और अपनी रचनाओं में उन पर करारी टिप्पणियाँ भी की हैं। उनके मत में ये वे बुराइयाँ हैं जो समाज की सुख-शांति, सेहत और ख़ुशहाली के रास्ते में बाधा पैदा करती हैं कबीर के दोहों तथा अन्य रचनाओं को सही सही समझ पाने के लिए हमें इन सभी बातों को ध्यान में रखना चाहिए।
— कुसुम बांठिया
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप ।
जाके हिरदे साँच है, ताके हिरदे आप ॥
इस दोहे में कबीर सत्य को ईश्वर का ही रूप मानते हैं । उनके अनुसार संसार में सबसे बड़ी (और कठिन) तपस्या है — सत्य । तपस्या में सफल होने के लिए अनेक कष्ट सहकर भी अपने मार्ग पर स्थिर होकर डटे रहना ज़रूरी है । सच्चाई के मार्ग में भी संसार अनेक बाधाएँ खड़ी करता है, किंतु मनुष्य यदि दृढ़ निश्चय से उस मार्ग पर डटा रहा तो वह तपस्या के ही समान है और वही सबसे बड़ा पुण्य है । इसीलिए इसका विपरीत, अर्थात झूठ बड़े भारी पाप के समान है । इसका सामना करते हुए भी जिसके हृदय में सच्चाई का वास हो, समझना चाहिए कि उसके हृदय में स्वयं ईश्वर (आप) बसता है ।
यहाँ ‘साँच’ और ‘झूठ’ का मतलब केवल बोलचाल में सच या झूठ के व्यवहार से नहीं है । यह सत्य मन , जीवन और व्यवहार का वह गुण है जो मनुष्य को सही और कल्याणकर रास्ते पर चलाता है और ईश्वर तक ले जाता है । इस रास्ते पर चलना आसान नहीं है क्योंकि माया और झूठ की शक्तियाँ इसमें बराबर बाधाएँ खड़ी करके व्यक्ति को भटकाने की कोशिश करती रहती हैं ।

आवत गारी एक है , उलटत होय अनेक ।
कह कबीर नहिं उलटिये , वही एक की एक ॥
कबीरदास जी ने सामाजिक वातावरण को सुख – शांतिपूर्ण बनाए रखने के लिए भी कई सुझाव और उपदेश दिए हैं । इस दोहे में उनकी सलाह है कि यदि कोई हमें गाली देता है, अर्थात हमसे झगड़ता और हमें अपमानित करता है तो हमें पलटकर झगड़ने की जगह चुप ही रह जाना चाहिए । जब सामने वाला हमें गाली दे रहा है तो वह केवल एक गाली हुई । पर अगर बदले में हम उसे गाली दें तो वह भी पलटकर और गालियाँ देगा और इस तरह झगड़ा बढ़ता ही जाएगा । लेकिन उस अवसर पर हम यदि चुप रह जाएँ तो उसे आगे झगड़ते रहने का आधार ही नहीं मिलेगा और झगड़ा वहीं थम जाएगा । हमें बुरा तो अवश्य लगेगा पर हम शांति और सहिष्णुता से काम लेंगे तो वह बुराई और अधिक नहीं फैल सकेगी और समाज में भी शांति और सौमनस्य बने रह सकेंगे ।

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कहत कबीर ०३
ऊँचे पानी ना टिकै, नीचे ही ठहराय । // बुरा जो देखन मैं चला , बुरा न मिलिया कोय ।…
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कहत कबीर ०४
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर । // काम क्रोध मद लोभ की, जब लग घट में खानि…
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कहत कबीर ०१
दोस पराए देख करि, चलत हसन्त हसन्त । // दीन, गरीबी, बंदगी, सब सों आदर भाव । कबीरदास जी संत…