मुहब्बत के लम्हे, बूंदों में लिपटे
बरसे जब हम पे, तो रिश्ता हुआ था
दीदार पहली दफा जब हुआ और
अंदाज़े पाकीज़ा तुमको छुआ था

चाहा है इस दिल ने, उस दिन से तुम को
रूहे मिलन है, ये शायद पुराना
रातों की स्याही है, तुमसे ही उजली
जगमग तुम्हीं से है, मेरा ज़माना

दुःख भी है सुख, गर मेरे संग तुम हो
साथी तेरे संग, दुःख भी सही है
नैया में मेरी, जो हो साथ तेरा
तो तूफां का भी मुझको, खौफ नहीं है

खुदा के दर पे, मैं सर को झुकाए
बोला, बताओ मिलें तुमसे कैसे
आँखों को मूंदे, खोजा उसे जब
तेरी ही सूरत, नज़र आयी जैसे

जितने हैं तारे, ऊपर आस्माँ में
सागर की लहरे, गिन लो ये सारे
उतने जनम का ये, वादा है जानम
मुहब्बत हो कायम, हमारी तुम्हारी

— डा. रानी कुमार

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