विषाद (Melancholia)
आइफ़ोन में पढ़ा और टीवी पे देखा कि आज मेरे घर के पास तूफ़ान आने वाला है । ज़ोरों से पानी बरसेगा और बड़े वेग से हवा चलेगी । अपने बचाव के लिए आप इंतज़ाम कर लें। यह तूफ़ान अब से करीब ६ घंटों के बाद चला जाएगा ।
खबर पढ़ कर थोड़ा डर तो लगा, लेकिन फिर ख़याल आया कि यह तूफ़ान तो टल जाएगा, ६ घंटों के बाद चला जाएगा, लेकिन मेरे दिल का तूफ़ान जो मुझे तेज हवा से भी ज़्यादा झकझोर रहा है, बरसात से भी ज़्यादा बहते-बहते गरम आंसुओं से कपड़ों को तो क्या दिल को भी भिगो कर , दिल को कस के सिकोड़ कर, तड़पा कर, मेरे रक्तचाप से खिलवाड़ कर रहे, इस तूफ़ान के जाने में क्या सिर्फ़ ६ घंटे में लगेंगे और फिर मुझे आराम के कुछ दिन और ज़िंदा रहने को मिल जाएँगे ?
तूफ़ान तो चला गया, शोर भी थम गया, वातावरण शान्त हो ही गया और भीगे-भीगे मौसम का अहसास करते थोड़ी आँख लग गयी और मैं सपनों के बादलों में इधर उधर भटक रहा था जैसे कि चैन को ढूँढ रहा हूँ, लेकिन, जैसे ही एक सुंदर बादल दिखता, एक ग़ुस्सैल बादल उसे हड़प लेता और बस काला बादल मस्त हो कर घूम कर जैसे मुझ से खिलवाड़ कर जैसे चिढ़ा रहा था कि तुम्हारा कोई महत्व नहीं है, तुम प्रकृति के सामने तुच्छ हो, ख़ैर मनाओ कि अभी तक ज़िंदा हो ।
उस दिन मुझे अपनी औक़ात का जो अहसास हुआ, वो आज तक दिल में शूल की तरह विद्यमान है । लेकिन उस दिन के तूफ़ान ने मुझे जो सिखाया, वो इतने सालों से “शांति” ढूँढने के पश्चात, शास्त्रों के पढ़ने के बाद, कई योगियों और पंडितों के व्याख्यानों के श्रवण से भी नहीं मिला कि मैं एक तुच्छ प्राणी हूँ, केवल प्रकृति का सम्मान करूँ और अपने “छोटेपन” का अहसास कर सारी दुनिया से निराश हुए बिना प्यार करूँ—काले बादल और तूफ़ान तो आते ही रहेंगे ।
वाह रे वाह तूफ़ान, तूने तो कमाल कर दिया ।
किसी ने ठीक ही कहा है
ये ज़िंदगी के मेले, ये ज़िंदगी के मेले
दुनिया में कम ना होंगे,
अफ़सोस हम ना होंगे
मेरे ख्याल में तो यह ठीक रहेगा
ये ज़िंदगी के मेले, ये ज़िंदगी के मेले
दुनिया में कम ना होंगे,
अच्छा है हम ना होंगे
— राम बजाज