मेरी अज्जी और मैं — समाप्ति पृष्ठ

सन १८९७ में एक दरिद्र परिवार में जन्म

२ वर्ष की आयु में ही पिता को खो दिया

९ वर्ष की आयु में विवाह

१० वर्ष की आयु में बाल-विधवा

२९ वर्ष की आयु में डॉक्टर की डिग्री हासिल

९२ वर्ष की दीर्घायु पाई

“मेरी अज्जी और मैं” मेरी दादी के जीवन-वृत्त को समेटे है ।

लगभग एक सदी के विस्तार में फैली हुई यह प्रेरक गाथा हमें बताती है कि अकुताई ने कैसे अपने प्रयत्नों से शिक्षा प्राप्त की, डॉक्टर बनीं, पुनर्विवाह किया, डॉक्टरी की प्रैक्टिस की, पूर्वी अफ़्रीका के जंगली इलाक़े में संतानों को जन्म दिया, उनका लालन-पालन किया और आगे चल कर, भारत आने के बाद, सुरक्शित मातृत्व की संभवता को बढ़ावा देने के लिए अपना प्रसूति गृह (maternity home) खोला ।

यह कथा है अदम्य साहस से कठिनाइयों के मुक़ाबले की । इस पुस्तक की बिक्री से प्राप्त रकम हिंगणे (पुणे) में महर्षि कर्वे स्त्री शिक्षण संस्था (MKSSS) के ‘भाऊबीज फ़ंड’ को दी जाएगी ।

लफ़्ज़ों में क्या रखा है

कहा कुछ तुमने ?– सुना नहीं, दुआ थी या बद्दुआ,  पता नही । हाँ और ना से,  हक़ीक़त बदलते देखी बातों  का अब  मुझे, आसरा नहीं ।

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यादों के साये (Nostalgia)

मुट्ठी में दुअन्नी

बचपन में हम एक छोटी सी औद्योगिक बसाहट में रहते थे – तीन बँगले, ८-१० क्वार्टर, मजदूरों की बस्ती, एक डिस्पेंसरी और बैरकनुमा ऑफिसों के

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