दोस्त दोस्तों को “जी” नहीं कहते
गाली भी दें तो, खफा नहीं रहते
जिनके होने से खुशी हो दुगनी
मुश्किल पड़े तो वो, हमसे जुदा नहीं रहते
दोस्ती मिले तो नेमत ख़ुदा की
उसके धरती पर होने की, अदा भी
शामें जो दोस्तों की महफ़िल में गुज़रीं
हंसी के वहां, क्या झरने नहीं बहते
मुश्किल पड़े तो वो, हमसे जुदा नहीं रहते
शाम बहुत प्यारी थी, रंगों में यारी थी
मोती के पल थे, दोस्तों के संग थे
वक़्त से बेखबर, न उम्र का तकाज़ा
जन्नत के ख़्वाब क्या ऐसे नहीं रहते ?
मुश्किल पड़े तो वो, हमसे जुदा नहीं रहते
गंभीर कहानियों में लुत्फ़ ही कहां है
हंसने हँसाने को दोस्ती कहा है
ग़म हुआ लापता, कहकहे हंसी के
ऐसी बरसातों में हम सदा रहते
मुश्किल पड़े तो वो, हमसे जुदा नहीं रहते
हमने रूहे दर्द की हर बात कह डाली
यारों ने मेरी, हर मुश्किल संभाली
वो बातें जो दिल ने, ज़हन से छुपाई
वही राज़ दिल का, न उनसे कैसे कहते
मुश्किल पड़े तो वो, हमसे जुदा नहीं रहते
बावरा, कंगाल हूँ तो, फर्क नहीं उनको,
बेनाम हूँ, कोई रुतबा न जग में मिला मुझको
कमबख़्त दोस्त ऐसा, फिर भी गले लगाया
कुछ दोस्त इस जहाँ में ऐसे भी रहते
मुश्किल पड़े तो वो, हमसे जुदा नहीं रहते
कृष्ण को सुदामा की रोटी थी ऐसी
राधा को श्याम की बंसी थी जैसी
अर्जुन के सखा ने, महाभारत जिता दी
दोस्ती की मिसाल ऐसी, कायम करा दी
द्रौपदी ने आवाज़ दी “लाज मेरी राखो”
दुष्ट गिरे ज़मी पे , केशव के रहते
मुश्किल पड़े तो वो, हमसे जुदा नहीं रहते
उम्र भर जगवाले, खोज रही तेरी
न बदली है मनको से, मन की हेराफेरी
गर सर को झुकाया, तो बस मांगने को
दोस्तों की महफ़िल, तमाम उम्र सहते
मुश्किल पड़े तो वो, हमसे जुदा नहीं रहते
“तू” कह कर ही पुकारो, हमको सदा मेरे भाई
यह रिवाज़ों की “जी”, हमे भास नहीं आई
दोस्तों की निगाहें कर्म का, हूँ मै बहुत प्यासा
अज़ान की हर दुआ में, यह हाथ उठा कहते
मुश्किल पड़े तो वो, हमसे जुदा नहीं रहते
— डा. रानी कुमार
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