मुट्ठी में दुअन्नी

बचपन में हम एक छोटी सी औद्योगिक बसाहट में रहते थे – तीन बँगले, ८-१० क्वार्टर, मजदूरों की बस्ती, एक डिस्पेंसरी और बैरकनुमा ऑफिसों के अहाते में एक राशन की दुकान – बस । अन्य सुविधाओं के लिए पास-दूर के गाँवों-कस्बों पर निर्भर रहना पड़ता था । ऐसी स्थिति में हमारे बड़े ही इंतज़ार, उत्साह […]