गुजरात के कुछ दर्शनीय स्थल
श्री जसवंत सिंह जी बाँठिया के, 20 वीं सदी के मध्य में जन्मे पौत्र-पौत्रियाँ, अपने जीवन के ८ वें / ९ वें दशक में पहुँच चुके हैं । इनमें से ज्यादाहतर का बचपन और युवावस्था कलकत्ता में ही बीता, जहां एक दूसरे से मिलना नियमित रूप से हो जाता था । आज परिस्थितियोंवश ये सब […]
मुट्ठी में दुअन्नी

बचपन में हम एक छोटी सी औद्योगिक बसाहट में रहते थे – तीन बँगले, ८-१० क्वार्टर, मजदूरों की बस्ती, एक डिस्पेंसरी और बैरकनुमा ऑफिसों के अहाते में एक राशन की दुकान – बस । अन्य सुविधाओं के लिए पास-दूर के गाँवों-कस्बों पर निर्भर रहना पड़ता था । ऐसी स्थिति में हमारे बड़े ही इंतज़ार, उत्साह […]
मेरी अज्जी और मैं (९/२१)

शुरुआत में जाइए मेरी अज्जी और मैं (१/२१) स्त्री परिवार की धुरी होती है; परिवार समाज की बुनियादी इकाई होता है; समाज मिलकर राष्ट्र को गढ़ते हैं और कई राष्ट्रों ने मिलकर हमारी यह ख़ूबसूरत दुनिया रची है । इसलिए भूमंडलव्यापी सामरस्य के लिए स्त्री की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है क्यों कि विश्व में […]
मेरी अज्जी और मैं (८/२१)

शुरुआत में जाइए मेरी अज्जी और मैं (१/२१) इसके शीघ्र बाद ही, शायद घर में नन्हे-नन्हे बच्चे होने के कारण, उनका तबादला सुम्बावांगा हो गया । यह कुछ बड़ा शहर था जहाँ वे लगभग दो साल रहे। यहीं पर नलू पोलियो की शिकार हुई थीं । इसके बाद वे उत्तर-पूर्व टांगानिका में पंगानी में रहे […]
मेरी अज्जी और मैं (७/२१)

शुरुआत में जाइए मेरी अज्जी और मैं (१/२१) समाज और आर्थिक स्थिति की सारी बाधाओं को अपने निजी संकल्प और जीवट के बल पर पार कर दिखाया था ।टांगानिका (आज के तंज़ानिया का एक हिस्सा) के एक मझोले-से शहर टबोरा में तात्या अपनी नई दुलहन को लेकर आए । बंबई से लेकर दार-ए-सलाम तक की […]
मेरी अज्जी और मैं (६/२१)

शुरुआत में जाइए मेरी अज्जी और मैं (१/२१) बापूजी से इस आकस्मिक मुलाक़ात का युवा गोपालराव के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा । उस दिन से उन्होंने स्वयं अपने जीवन में भी सादा जीवन उच्च विचार के सिद्धांतों पर आचरण करना शुरू कर दिया । जीवन के अंतिम दिन तक उन्होंने केवल खादी के सादे […]
मेरी अज्जी और मैं (५/२१)

शुरुआत में जाइए मेरी अज्जी और मैं (१/२१) पुणे के बैरामजी जीजीभॉय मेडिकल स्कूल में श्रीमती रखमाबाई कोटणीस (जन्मनाम – अकुताई चिटणीस), गिनी-चुनी महिला शिक्षार्थियों में से थीं । कॉलेज का यह नाम १९२३ में था जिसे बादमें बदलकर बी. जे. मेडिकल कॉलेज कर दिया गया । पढ़ाई में बहुत तेज़ होने के कारण अकुताई […]
मेरी अज्जी और मैं (४/२१)

शुरुआत में जाइए मेरी अज्जी और मैं (१/२१) श्री कर्वे से अकुताईको ऊँचे सपने देखने के लिए आवश्यक प्रोत्साहन मिला । उस समय स्त्रियों के सपने प्रायः डिप्लोमा या डिग्री लेकर स्कूल में शिक्षिका बन जानेतक की ही गुंजाइश पाते थे । अण्णासाहब के प्रभाव से अकु ने और अधिक चुनौती भरे विकल्पों – जैसे […]
मेरी अज्जी और मैं (३/२१)

शुरुआत में जाइए मेरी अज्जी और मैं (१/२१) सन १९१५ में पुणे आगमन अकुताई के जीवन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ । अकुताई की अनेक लंबी-लंबी यात्राओं में आजरा गाँव से पुणे तक की यह यात्रा प्रथम थी, और शायद सबसे अधिक महत्वपूर्ण भी । सत्रह वर्ष की किशोरी के लिए गाँव […]
मेरी अज्जी और मैं (२०/२१)

शुरुआत में जाइए मेरी अज्जी और मैं (१/२१) बाबा को किसी भी काम में ज़रा-सी भी कसर बर्दाश्त नहीं होती थी । उन्होंने अपने लिए बहुत ऊँचे प्रतिमान तय कर रखे थे और अपने परिवार तथा सहकर्मियों से भी वे उसी स्तर की उम्मीद रखते थे। हम सभी कभी न कभी उनकी अपेक्षाओं पर खरा […]