मेरी अज्जी और मैं (१८/२१)

अस्पताल में प्रैक्टिस से कॉर्पोरेट दफ़्तर – मेरे लिए यह परिवर्तन बहुत बड़ा था । इसके लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल मैंने पुणे की सिम्बायोसिस इंटरनेशनलइंस्टिट्यूट द्वारा संचालित दूर-शिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से हासिल किया । ये पाठ्यक्रम पूरे करने के बाद मुझे चिकित्सा-विधिक (मेडिको लीगल) प्रणालियों तथा स्वास्थ्य सेवा एवं अस्पताल प्रबंधन में स्नातकोत्तर […]
मेरी अज्जी और मैं (१७/२१)

विवेक और मुझे एक बड़ा महत्वपूर्ण फ़ैसला करना था कि भारत लौटने के बाद हम कहाँ बसें । मेरे मन में यह बात हमेशा से थी कि रहेंगे हम भारत में ही । मुझे भ्रमण करने का, नए-नए स्थान देखने का, नए-नए लोगों से मिलने का और भिन्न-भिन्न संस्कृतियों को जानने-समझने का बड़ा शौक था, […]
मेरी अज्जी और मैं (१६/२१)

हमने मॉस्को में गर्मियों के गुनगुने मौसम का खूब आनंद लिया । जगत प्रसिद्ध रशियन सर्कस देखने का मौक़ा हमें कई बार मिला । तक़दीर से अस्पताल में मेरी एक मित्र के पिता के. जी. बी. में उच्चाधिकारी थे और उनके ज़रिये वह मेरे लिए बोल्शोइ थियेटर के प्रसिद्ध बैले प्रदर्शनों – स्वान लेक, नटक्रैकर, […]
मेरी अज्जी और मैं (१५/२१)

मैं तेरह साल की थी जब मैंने सर्जन बनने का फ़ैसला कर लिया । डॉक्टर बनने के बारे में मैंने नहीं सोचा, सर्जन ही बनना चाहा था । यह निर्णय मेरे दिमाग़ में अचानक ही स्पष्ट हुआ – एक रेल यात्रा के दौरान । लखनऊ से पुणे तक के सफ़र में मैंने एक बड़ी प्रेरणास्पद […]
मेरी अज्जी और मैं (१४/२१)

अज्जी के यहाँ रहते समय मेरी एक अजीब दोस्ती हुई । श्रीमती सुशीला ताई पाई – या जैसे हम उन्हें पुकारते थे, पाई अज्जी, हमारे घर ‘गुरुप्रसाद’ के सामने ही एक कमरे में रहती थीं । सत्तर के दशक में चल रही ये अकेली महिला दर असल मेरी अज्जी की सहेली थीं । जैसा उनके […]
मेरी अज्जी और मैं (१३/२१)

समाज और आर्थिक स्थिति की सारी बाधाओं को अपने निजी संकल्प और जीवट के बल पर पार कर दिखाया था ।सन् १९७१ में मैं नौ वर्ष की थी और अपने परिवार के साथ तोक्यो में रह रही थी । मेरे पिता भारतीय रेलवे से प्रतिनियुक्ति पर वहाँ भारतीय दूतावास में वैज्ञानिक अताशे के पद पर […]
मेरी अज्जी और मैं (१२/२१)

उनकी आँखों की रोशनी अचानक या किसी दुर्घटना के चलते नहीं गई थी । दोनों आँखों में अपक्षयी मैक्युलोपैथी के कारण उनकी नज़र धीरे-धीरे कम होती गई । मैं नहीं कह सकती कौन-सी बात ज़्यादा कष्टकर है – किसी दुर्घटना में नज़र को अचानक खो बैठना या यह जानते हुए दृष्टिशक्ति का धीरे-धीरे क्षीण होते […]
मेरी अज्जी और मैं (११/२१)

मेरे मन में दादी की सबसे पहली छवियाँ तब की हैं जब मैं चार या पाँच वर्ष की थी । अपने पुणेवाले घर की बालकनी में मोढ़े पर बैठकर धूप में बाल सुखाते हुए उनकी छवि मुझे याद आती है । सुबह की धूप में बीच-बीच में चमकते चाँदी के तारों वाले उनके लंबे काले […]
मेरी अज्जी और मैं (१०/२१)

मेरी प्यारी अज्जी ने मुझे सिखाया कि नन्हे बच्चे की देखभाल के लिए ज़्यादा कुछ ज़रूरी नहीं होता । उसे सिर्फ़ माता-पिता के प्यार, देखभाल और सुरक्षा की ज़रूरत होती है, और कोई भी स्त्री पढ़ाई या काम करते हुए बच्चों को यह सब मुहय्या करा ही सकती है । बच्चे जीवन में अपनी क्षमताओं […]
मेरी अज्जी और मैं (१/२१)

इस प्रस्तुति में हम आपके सामने एक ऐसी जुझारू महानारी की कथा पेश करने जा रहे हैं जिन्होने अपने समय, समाज और आर्थिक स्थिति की सारी बाधाओं को अपने निजी संकल्प और जीवट के बल पर पार कर दिखाया था । जिस युग में स्त्रियों की प्रतिभा उनके बाल्यकाल से ही चौके-चूल्हे, घर-गृहस्ती या मजूरी […]