मेरी अज्जी और मैं (९/२१)

स्त्री परिवार की धुरी होती है; परिवार समाज की बुनियादी इकाई होता है; समाज मिलकर राष्ट्र को गढ़ते हैं और कई राष्ट्रों ने मिलकर हमारी यह ख़ूबसूरत दुनिया रची है । इसलिए भूमंडलव्यापी सामरस्य के लिए स्त्री की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है क्यों कि विश्व में सुंदरता और शांति उसी के प्रयासों से आती […]
मेरी अज्जी और मैं (८/२१)

इसके शीघ्र बाद ही, शायद घर में नन्हे-नन्हे बच्चे होने के कारण, उनका तबादला सुम्बावांगा हो गया । यह कुछ बड़ा शहर था जहाँ वे लगभग दो साल रहे। यहीं पर नलू पोलियो की शिकार हुई थीं । इसके बाद वे उत्तर-पूर्व टांगानिका में पंगानी में रहे जो नदी तट पर बना बंदरगाह है । […]
मेरी अज्जी और मैं (७/२१)

समाज और आर्थिक स्थिति की सारी बाधाओं को अपने निजी संकल्प और जीवट के बल पर पार कर दिखाया था ।टांगानिका (आज के तंज़ानिया का एक हिस्सा) के एक मझोले-से शहर टबोरा में तात्या अपनी नई दुलहन को लेकर आए । बंबई से लेकर दार-ए-सलाम तक की लंबी समुद्र यात्रा और फिर टबोरा तक ज़मीनी […]
मेरी अज्जी और मैं (६/२१)

बापूजी से इस आकस्मिक मुलाक़ात का युवा गोपालराव के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा । उस दिन से उन्होंने स्वयं अपने जीवन में भी सादा जीवन उच्च विचार के सिद्धांतों पर आचरण करना शुरू कर दिया । जीवन के अंतिम दिन तक उन्होंने केवल खादी के सादे वस्त्र धारण किए और सर पर गाँधी टोपी […]
मेरी अज्जी और मैं (५/२१)

पुणे के बैरामजी जीजीभॉय मेडिकल स्कूल में श्रीमती रखमाबाई कोटणीस (जन्मनाम – अकुताई चिटणीस), गिनी-चुनी महिला शिक्षार्थियों में से थीं । कॉलेज का यह नाम १९२३ में था जिसे बादमें बदलकर बी. जे. मेडिकल कॉलेज कर दिया गया । पढ़ाई में बहुत तेज़ होने के कारण अकुताई को छात्रवृत्ति मिलती थी जिससे उनके स्कूल (कॉलेज) […]
मेरी अज्जी और मैं (४/२१)

श्री कर्वे से अकुताईको ऊँचे सपने देखने के लिए आवश्यक प्रोत्साहन मिला । उस समय स्त्रियों के सपने प्रायः डिप्लोमा या डिग्री लेकर स्कूल में शिक्षिका बन जानेतक की ही गुंजाइश पाते थे । अण्णासाहब के प्रभाव से अकु ने और अधिक चुनौती भरे विकल्पों – जैसे डॉक्टरी – पर भी विचार करना सीखा । […]
मेरी अज्जी और मैं (३/२१)

सन १९१५ में पुणे आगमन अकुताई के जीवन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ । अकुताई की अनेक लंबी-लंबी यात्राओं में आजरा गाँव से पुणे तक की यह यात्रा प्रथम थी, और शायद सबसे अधिक महत्वपूर्ण भी । सत्रह वर्ष की किशोरी के लिए गाँव से उखड़कर शहर में बिलकुल अकेले आ बसना […]
मेरी अज्जी और मैं (२०/२१)

बाबा को किसी भी काम में ज़रा-सी भी कसर बर्दाश्त नहीं होती थी । उन्होंने अपने लिए बहुत ऊँचे प्रतिमान तय कर रखे थे और अपने परिवार तथा सहकर्मियों से भी वे उसी स्तर की उम्मीद रखते थे। हम सभी कभी न कभी उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरनेका तनाव झेलते थे, पर साथ ही उनकी […]
मेरी अज्जी और मैं (२/२१)

जैसा उस समय का रिवाज़ था, उन्होंने नौ वर्ष की होते न होते अकुताई का विवाह तय कर दिया। आज यह बात हमें बड़ी अजीब लगती है, किन्तु उस समय की सामाजिक प्रथा के अनुसार यह बिलकुल उचित था । अकुताई का विवाह उनके नाना के मित्र और पड़ोसी श्री कोटणीस के पंद्रह वर्षीय पुत्र […]
मेरी अज्जी और मैं (१९/२१)

समाज और आर्थिक स्थिति की सारी बाधाओं को अपने निजी संकल्प और जीवट के बल पर पार कर दिखाया था ।१ जनवरी २०१३ को संयोग से मैं पुणे में थी । छः दिन में मेरे जीवन का एक प्रमुख पड़ाव आनेवाला था – मेरा पचासवाँ जन्मदिन ! मुझे क्या पता था कि यह नया वर्ष […]