कहत कबीर ५४

कबीरदासजी संत कहे जाते हैं, पर इनके विचारों और रचनाओं का क्षेत्र केवल धर्म, अध्यात्म, चिंतन और भजन नहीं है। उन्होंने सांसारिक जीवन — व्यक्ति के चरित्र और व्यवहार; समाज की प्रचलित प्रथाओं, व्यवहारों और अंधविश्वासों; समाज में फैले ऊँच-नीच के भाव; जाति प्रथा की बुराइयों; सभी धर्म-संप्रदायों के व्यवहार में आए हुए अंधविश्वासों तथा पाखण्डों आदि — पर भी गहरा विचार किया है और अपनी रचनाओं में उन पर करारी टिप्पणियाँ भी की हैं। उनके मत में ये वे बुराइयाँ हैं जो समाज की सुख-शांति, सेहत और ख़ुशहाली के रास्ते में बाधा पैदा करती हैं कबीरदास जी के दोहों तथा अन्य रचनाओं को सही सही समझ पाने के लिए हमें इन सभी बातों को ध्यान में रखना चाहिए।

— कुसुम बांठिया

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मन सब पर असवार है, पैड़ा करे अनंत
मन ही पर असवार रहै, कोई बिरला संत ।।

मानव का मन स्वभाव से ही चंचल होता है और जो मनुष्य विवेक को भूलकर केवल मन के ही अनुसार चलता है वह जीवन में भटक जाता है । इस दोहे में कबीरदास जी इसी बात को समझाते हुए कहते हैं कि मन सब पर सवार रहता है अर्थात, सभी व्यक्ति मन के वश में होते हैं और जैसे सवार घोड़े को अपनी मनचाही दिशा में ले चलता है, उसी प्रकार मन उन्हें अनगिनत राहों पर इधर-उधर भटकाता रहता है । ऐसे साधु स्वभाव व्यक्ति गिने चुने ही होते हैं जो मन पर सवार हों, अर्थात मन को अपने वश में रखें और भटके बिना जीवन में सही दिशा में चलते रहें । सही राह पर चलना बहुत ही कठिन है और उसके लिए निर्मल मन के साथ ही बहुत दृढ़ संकल्प शक्ति और आत्मबल की ज़रूरत होती है । इसीलिए ऐसे लोग बहुत कम मिलते हैं ।

कंचन को तजबो सहज, सहल त्रिया को नेह ।
निंदा केरो त्यागबो, बड़ा कठिन है येह ।।

परनिंदा एक ऐसी लत बन जाती है जिसे त्यागना मनुष्य के लिए लगभग असंभव हो जाता है । इसी तथ्य पर प्रकाश डालते हुए कबीरदास जी इसकी तुलना अन्य कुछ ऐसी बातों से करते हैं जिनसे मनुष्य को बड़ा लगाव होता है । वे कहते हैं, सोने — सुवर्ण के प्रति अपने मोह और आकर्षण को त्यागना मनुष्य के लिए आसान है । अपनी प्रिय नारी से भी वह सहज ही मुँह मोड़ सकता है, किंतु परनिंदा में उसे इतना अधिक आनंद आता है कि इस लत को छोड़ना उसे बहुत ही ज़्यादा कठिन लगता है ।

  • कहत कबीर ०३

    ऊँचे पानी ना टिकै, नीचे ही ठहराय । // बुरा जो देखन मैं चला , बुरा न मिलिया कोय ।…

  • कहत कबीर ०४

    बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर । // काम क्रोध मद लोभ की, जब लग घट में खानि…

  • कबीर दास जी से प्रेरित कुछ दोहे — १

    यह दोहे श्री अनूप जलोटा के गाये हुए “कबीर दोहे” की धुन पर सजते हैं Ego को न बढ़ाइए, Ego में है…

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