उलझन
जब मुझे यह पता चला की एक नई वेबसाइट का निर्माण हुआ है जिसका नाम है यू क्रिएटऑनलाइन (youcreateonline.com), और मैं भी इसके लिए कुछ लिख सकती हूं तो मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा ।
मैंने सोचा क्या लिखूं मन में आया क्यों ना एक कहानी लिखूं । फिर सोचा “अरे नहीं कहानी लिखना कौन सी बड़ी बात है यह तो सभी लिखते हैं । मैं तो कुछ और ही, कुछ रोचक, कुछ मनोरंजक लिखूंगी ।“
सोचना शुरू किया, दिमाग पर जोर डाला और सोचा की क्यों न एक संस्मरण लिख डालूँ । रोज ही हम इतने लोगों के संपर्क में आते हैं, उनसे बात-चीत करते हैं, हंसी-मज़ाक करते हैं । इनमे से कई परिस्थितियाँ काफी दिलचस्प होती हैं जिन्हें औरों से साझा किया जा सकता है ।
लेकिन फिर लगा कि दूसरों के साथ हुई बातें प्रकाशित करने पर उन्हे ऐतराज़ हो सकता है । तो सोचा क्यों न कोई आत्मकथा लिखी जाय । अपनी स्वयं की आत्म कथा लिखने का न समय था न ही तैयारी । सोचा, क्यों न किसी ऐसी निर्जीव वस्तु, जैसे फूल या पैसे, की आत्म कथा, अपने नज़रिये से लिखूँ । क्यों कि इसमे केवल काल्पनिक बातें रहेंगी तो इसके लिए ज्यादाह शोध भी नहीं करना पड़ेगा और न ही इससे किसी को कोई ऐतराज़ भी नहीं होगा ।
फिर लगा कि सभी ने अपने स्कूल में, दबाव की स्थिति में, ऐसी “आत्मकथाएँ” लिखी होंगी और शायद वह ऐसा शीर्षक देख कर ही इसे नहीं पढ़ने का निर्णय ले लेंगे । इससे तो वेबसाइट का फायदा होने की जगह नुकसान हो जाएगा ।
दिमाग घूम-घाम कर फिर उसी सोच पर आ गया – ऐसा क्या लिखा जाय जो पढ़नेवालों के लिए मनोरंजक हो और जिसे लिखने मे मुझे ज्यादा दिमाग और समय न लगाना पड़े । सोचते-सोचते किसी मनोरंजक घटना लिखने का खयाल आया । फिर सोचा “महानुभाव” घटनाओं का तो काम ही है होना और वह तो हर समय, हरेक के साथ होती रहती हैं और होती रहेगी । फिर क्यों कोई एक और “घटना” पढ़ने में अपना समय बर्बाद करेगा । मारो गोली घटनाओं को यार मैं तो कुछ और ही लिखूंगी ।
मेरा दिमाग बिल्कुल नहीं चल रहा था कि मैं क्या लिखूं । सोचा बाहर जाकर थोड़ी हवा खा लूं और दिमाग को तरोताजा कर लूं फिर लिखूंगी । दिमाग में आया कि क्यों ना मैं एक निबंध लिखूं । अब निबंधों के विविध प्रकार मेरे मन में घूमने लगे भावनात्मक, विश्लेषणात्मक ,ऐतिहासिक, या साहित्यिक आदि आदि। मैं किसी एक को चुनने ही वाली थी,कि मेरे दिमाग में आया निबंध तो बहुत रूखी चीज है इससे लोग बोर नहीं महा बोर हो जाएंगे । मैं तो कोई ऐसी चीज लिखूं ,जिसे पढ़ने वालों को मजा आए । बेकार क्यों निबंध जैसी चीज में अपना माथा लगाऊं और अपनी प्रतिभा का अपव्यय करूं ।
मैंने प्रतिभा शब्द के प्रयोग पर अपनी बुद्धि को दाद दी, लेकिन मेरी उलझन बरकरार थी । मेरे दिमाग ने बिजली की फुर्ती से काम करना शुरू किया और एक नई बात सूझ ही गई । मैंने कविता का निश्चय किया और पालक झपकते एक फड़कती हुई पंक्ति भी लिख डाली । लेकिन उसके आगे लाल बत्ती का सिग्नल आ गया और उसे देख मेरी सोच ने आगे बढ़ने से इंकार कर दिया । रास्ते में ही मेरी गाड़ी फिर से अटक गई। कितनी बार ठंडा पानी पिया, वजन बढ़ाने के दर बावजूद आइसक्रीम खा लिया । जीभ को तो अच्छा लगा लेकिन दिमाग को तो कुछ नहीं मिला था इसलिए उसने एक कदम भी आगे बढ़ने से इंकार कर दिया । उसे शांत करने के लिए कुछ समय तक सिर पर बर्फ़ भी रखी कि कोई फड़कती हुई पंक्ति मिल जाए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ । दिमाग वैसा का वैसा ही उलझन में रहा ।
बंधुवर अब आप ही बताइए मैं क्या करूं इस वेबसाइट के लिए मैं क्या लिखूं ?
— कुमुद बोथरा
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