कहत कबीर ४०

कबीरदासजी संत कहे जाते हैं, पर इनके विचारों और रचनाओं का क्षेत्र केवल धर्म, अध्यात्म, चिंतन और भजन नहीं है। उन्होंने सांसारिक जीवन — व्यक्ति के चरित्र और व्यवहार; समाज की प्रचलित प्रथाओं, व्यवहारों और अंधविश्वासों; समाज में फैले ऊँच-नीच के भाव; जाति प्रथा की बुराइयों; सभी धर्म-संप्रदायों के व्यवहार में आए हुए अंधविश्वासों तथा पाखण्डों आदि — पर भी गहरा विचार किया है और अपनी रचनाओं में उन पर करारी टिप्पणियाँ भी की हैं। उनके मत में ये वे बुराइयाँ हैं जो समाज की सुख-शांति, सेहत और ख़ुशहाली के रास्ते में बाधा पैदा करती हैं कबीरदास जी के दोहों तथा अन्य रचनाओं को सही सही समझ पाने के लिए हमें इन सभी बातों को ध्यान में रखना चाहिए।

— कुसुम बांठिया

Read in English

पानी मिलै न आपको, औरन बकसत क्षीर ।
अपना मन निस्चल नहीं, और बँधावत धीर ।।

कबीरदास जी ने गुरु की महिमा पर बार बार प्रकाश डाला है, पर साथ ही वे गुरु के लिए आवश्यक गुणों पर भी प्रकाश डालते रहे हैं । जैसा कि वे इस दोहे में कहते हैं, जिसके अपने पास पानी न हो, वह औरों को निर्मल जल नहीं दे सकता । इसी तरह, जिसका अपना मन चंचल या अस्थिर है, वह दूसरों को धैर्य की शिक्षा कैसे दे सकता है ? प्रकृति का नियम है कि आप दूसरों को वही कुछ दे सकते हैं जो आपके पास हो —- चाहे वह कोई भौतिक वस्तु हो या ज्ञान जैसा कोई अमूर्त गुण। ज्ञान भी आप तभी बाँट सकते हैं जब आप स्वयं ज्ञानी हों। इसीलिए, शिष्यों को ज्ञान का मार्ग दिखाने के लिए पहले स्वयं गुरु का परम ज्ञानी होना आवश्यक है ।

कबीर संगत साधु की ज्यौं गंधी का बास।
जो कछु गंधी दे नहीं, तौ भी बास सुबास ।।

इस दोहे में सत्संगति का महत्व दिखलाते हुए कबीरदास जी कहते हैं कि साधु या सज्जन व्यक्ति इत्रफ़रोश जैसे होते हैं । इत्र बेचनेवाला अपने साथ मिलने जुलने वालों को इत्र न भी दे तो भी उसके आस पास इत्र की सुगंध हमेशा बनी रहती है और पास बैठने वालों को बहुत सुख देती है । इसी प्रकार सज्जन व्यक्ति किसी के लिए कुछ करे न या नहीं, उसके गुण हमेशा आस पास वालों को आनंदित करते और प्रेरणा देते रहते हैं ।

  • कहत कबीर ०३

    ऊँचे पानी ना टिकै, नीचे ही ठहराय । // बुरा जो देखन मैं चला , बुरा न मिलिया कोय । ऊँचे पानी ना टिकै, नीचे ही ठहराय//बुरा जो देखन मैं चला , बुरा न मिलिया कोय// कबीरदास जी संत कहे जाते हैं, पर इनके विचारों और रचनाओं का क्षेत्र केवल धर्म, अध्यात्म, चिंतन और भजन…

  • कहत कबीर ०४

    बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर । // काम क्रोध मद लोभ की, जब लग घट में खानि । कबीरदास जी संत कहे जाते हैं, पर इनके विचारों और रचनाओं का क्षेत्र केवल धर्म, अध्यात्म, चिंतन और भजन नहीं है। उन्होंने सांसारिक जीवन — व्यक्ति के चरित्र और व्यवहार; समाज की प्रचलित प्रथाओं,…

  • कबीर दास जी से प्रेरित कुछ दोहे — १

    यह दोहे श्री अनूप जलोटा के गाये हुए “कबीर दोहे” की धुन पर सजते हैं Ego को न बढ़ाइए, Ego में है दोष  जो Ego को कम करे, उसे मिले संतोष मानुष ऐसा चाहिए, प्रेम से हो भरपूर सेवा सब की जो करे, रहे अहम् से दूर  “कबिरा” नगरी प्रेम की, उसमे तेरा वास  उस नगरी के द्वार पर, लिखा है “कर विश्वास” — राम बजाज Image Credits: https://www.tentaran.com/happy-kabir-das-jayanti-wishes-status-images/

पद्य (Poetry)

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My love, my heart whispers to you,In your gentle drops, my soul renews.You bring a smile, a soft delight,Farmers’ hearts rejoice, with hope so bright.

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