पैदा होते ही बच्चा रोता क्यों है?
एक स्वछंद आत्मा, कर्म मुक्ति हेतु
फिर एक बार भौतिक जीवन मे प्रवेश करती है
एक नया चक्र शुरू होता है
एक भावी जीवन रूप लेता है
चेतना नहीं लेकिन एक आकार विकसित होता है
अपने आस-पास से अनजान, बस प्रकृति के सहारे बढ़ता जाता है
फिर जागती है चेतना
एक “स्वच्छंद” आत्मा को होता है अपने परिवेश का एहसास
एक बंद घेरा, जल से भरा – ऐसा अंधकार कि आँखों को कुछ सूझे ही नहीं
सिर्फ महसूस होती हैं बाहर से आती हुई आवाजें, बात-चीत,
और माँ के शरीर की हरकतों के झटके
इसी तंग माहौल में पनपते हैं अंग, तंत्र और देह का ढांचा,
समय के साथ शरीर बढ़ता है,
पर परिवेश का घेरा उतनी जल्दी नहीं बढ़ पाता,
नीचे सिर – ऊपर पैर वाली उल्टी मुद्रा और तंग घेरे में भिंचा “शिशु”
सपने देखने लगता है, यहाँ से निकलकर मुक्त परिवेश में विहार के
फिर वह “महत्वपूर्ण” दिन आता है, जन्म का
प्रकृति, माँ, धाई/डॉक्टर और खुद अपने प्रयास से
एक नया जीव इस धरती पर आता है, और पहली बार
उसे इस नई असीम और “स्वच्छंद” दुनिया का बोध होता है
उसे आभास होता है इस भौतिक दुनिया का, इसके तौर तरीकों का
और वह सांस लेना भूल कर, चुप-चाप, यही सोचने लगता है
“ये कैसी जगह आ गया मैं फूलों की चाह में, कांटो के बीच?
कैसे मुमकिन है यहाँ स्वच्छंदता, इन नियमों–विनियमों के बीच?
नियम, कानून, रीति-रिवाजों, तहज़ीबों आदि की सूचियाँ, बड़ी लंबी हैं यहाँ
देश, समाज, धर्म, जाति, वर्ण आदि वर्गों में इनकी, तजवीज़ (राय) हैं जुदा-जुदा
हर एक अपेक्षा है कि सभी अपना जीवन उन्ही के “आदर्शों” के अनुसार जियें
और कोई ऐसा न कर सके, तो उसे प्रताड़ित करने की भी व्यवस्था है
माना कुछ नियम – कानून समाज की व्यवस्था के लिए ज़रूरी हैं
लेकिन सूचियाँ, प्रभुत्वता और अलगाव के नियमों से भी भरी-पूरी हैं
नियम बनाने में, सबने अपने-अपने स्वार्थों का रखा है पूरा ध्यान
पर दूसर ऐसा करे, तो उसे माना है अपराध महान
“इनको जानने–समझने में ही मेरा, सारा जीवन बीत जाएगा
इनसे हटकर कुछ “अच्छा” करने का, शायद मौका ही नहीं आयेगा”
“इससे तो अच्छा था माँ का गर्भ – अंधकार और भिंचाव के बावजूद
कम से कम हर पल कलह और रिवाजों के दबाव तो न थे मौजूद”
आत्मा के रूप में ब्रह्मांड के लक्ष्यहीन विचरण में,
आत्मोन्नति का कोई मौका तो नही था
लेकिन, इस भौतिक जगत की वस्तुओं और परिस्थितियों से होनेवाली आत्मा की अधोगति का भी ख़तरा नहीं था
पहले पता होता तो मैं इस दुनिया मे जन्म लेने की ख़्वाहिश ही न करता
अब तो जन्म के समय ही इस हालत में हूँ कि “जीता क्या न करता”
बोल नहीं सकता, तो कैसे जताऊँ कि मैं यहाँ आकर ख़ुश नहीं हूँ
बस एक ही विकल्प है मेरे पास, कि मैं गला फाड़-फाड़ के रोऊँ, चिल्लाऊँ
Image credit : https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Crying_newborn.jpg