कहत कबीर ३८

कबीरदासजी संत कहे जाते हैं, पर इनके विचारों और रचनाओं का क्षेत्र केवल धर्म, अध्यात्म, चिंतन और भजन नहीं है। उन्होंने सांसारिक जीवन — व्यक्ति के चरित्र और व्यवहार; समाज की प्रचलित प्रथाओं, व्यवहारों और अंधविश्वासों; समाज में फैले ऊँच-नीच के भाव; जाति प्रथा की बुराइयों; सभी धर्म-संप्रदायों के व्यवहार में आए हुए अंधविश्वासों तथा पाखण्डों आदि — पर भी गहरा विचार किया है और अपनी रचनाओं में उन पर करारी टिप्पणियाँ भी की हैं। उनके मत में ये वे बुराइयाँ हैं जो समाज की सुख-शांति, सेहत और ख़ुशहाली के रास्ते में बाधा पैदा करती हैं कबीरदास जी के दोहों तथा अन्य रचनाओं को सही सही समझ पाने के लिए हमें इन सभी बातों को ध्यान में रखना चाहिए।

— कुसुम बांठिया

Read in English

ज्यों तिरिया पीहर बसै, सुरति रहै मन माँहि ।
ऐसे जन जग में रहैं, हरि को भूलें नाहिं ।।

कबीरदास जी सामान्य उदाहरणों से बड़ी गहरी बात कह जाते हैं । इस दोहे में उन्होंने पीहर (पिता के घर) आई हुई विवाहिता स्त्री के माध्यम से मानव (भक्त) और परमात्मा के संबंध पर प्रकाश डाला है । वे कहते हैं, (पति से गहरा प्रेम करनेवाली) कोई स्त्री पति को पीछे छोड़कर पीहर आने पर भी उसे भूलती नहीं । पति की याद उसके मन में बराबर बनी रहती है । उसी प्रकार मानव आत्मा को भी इस पृथ्वी पर आकर भी ब्रह्म का ध्यान मन में बराबर बनाए रखना चाहिए ।

छिनहि चढ़ै छिन ऊतरै, सो तो प्रेम न होय ।
अघट प्रेम पिंजर बसै, प्रेम कहावै सोय ।।

इस दोहे में कबीरदास जी प्रेम का वास्तविक और गहरा अर्थ समझा रहे हैं । उनके अनुसार प्रेम एक स्थायी भावना है । मन में आता जाता रहने वाला भाव प्रेम नहीं कहला सकता । प्रेम ऐसा अटल भाव है जो हृदय के पिंजर में सदा वास करता रहे और जिसकी मात्रा कभी भी कम न हो ।
यह विशेषता सांसारिक प्रेम पर भी लागू होती है पर कबीरदास जी यहाँ आध्यात्मिक प्रेम की बात कर रहे हैं जो आत्मा का परमात्मा के प्रति या जीव का ब्रह्म के प्रति होता है ।

  • कहत कबीर ०३

    ऊँचे पानी ना टिकै, नीचे ही ठहराय । // बुरा जो देखन मैं चला , बुरा न मिलिया कोय । ऊँचे पानी ना टिकै, नीचे ही ठहराय//बुरा जो देखन मैं चला , बुरा न मिलिया कोय// कबीरदास जी संत कहे जाते हैं, पर इनके विचारों और रचनाओं का क्षेत्र केवल धर्म, अध्यात्म, चिंतन और भजन…

  • कहत कबीर ०४

    बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर । // काम क्रोध मद लोभ की, जब लग घट में खानि । कबीरदास जी संत कहे जाते हैं, पर इनके विचारों और रचनाओं का क्षेत्र केवल धर्म, अध्यात्म, चिंतन और भजन नहीं है। उन्होंने सांसारिक जीवन — व्यक्ति के चरित्र और व्यवहार; समाज की प्रचलित प्रथाओं,…

  • कबीर दास जी से प्रेरित कुछ दोहे — १

    यह दोहे श्री अनूप जलोटा के गाये हुए “कबीर दोहे” की धुन पर सजते हैं Ego को न बढ़ाइए, Ego में है दोष  जो Ego को कम करे, उसे मिले संतोष मानुष ऐसा चाहिए, प्रेम से हो भरपूर सेवा सब की जो करे, रहे अहम् से दूर  “कबिरा” नगरी प्रेम की, उसमे तेरा वास  उस नगरी के द्वार पर, लिखा है “कर विश्वास” — राम बजाज Image Credits: https://www.tentaran.com/happy-kabir-das-jayanti-wishes-status-images/

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Dear Rain

My love, my heart whispers to you,In your gentle drops, my soul renews.You bring a smile, a soft delight,Farmers’ hearts rejoice, with hope so bright.

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शुरुआत में जाइए मेरी अज्जी और मैं (१/२१) स्त्री परिवार की धुरी होती है; परिवार समाज की बुनियादी इकाई होता है; समाज मिलकर राष्ट्र को

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