घटना वाले दिन, खाने के समय चारों लोग जन-सेवा बैंक में गए । उससे पहले चारों ने अपना वेश बदला – चारों ने काले रंग के कपड़े पहने, सिर पर एक टोपा (हुड) पहना और उसके उपर एक काले रंग का कोविड-मास्क पहना । मास्क पर शहर के एक लोकप्रिय अस्पताल का नाम कढ़ा हुआ था । इस यूनिफार्म को पहन कर चारों लोग एक से ही लगने लगे । साथ ही, सब ने काले रंग के १२ नंबर के जूते पहन लिए । जूते बड़े थे, लेकिन उन्होंने कुछ कागज़ और कपड़े ठूंस कर पहनने लायक बना लिया ।
जन-सेवा बैंक पहुँच कर अखिलेश गाड़ी में ही बैठा रहा और बाकी तीन लोगों ने बैंक में प्रवेश किया । दरवाज़े के अन्दर बड़ी मूंछोंवाला एक बूढ़ा सा गार्ड बंदूक लेकर खड़ा था, और खड़े – खड़े ही ऊँघ रहा था । अल्ताफ ने बड़ी आसानी से उसे धर – दबोचा और उसके मुंह पर टेप और मास्क लगा दिये, उसके हाथों को टेप से बांध दिया और चेतावनी दी कि वह चुप – चाप बैठा रहे नहीं तो हाथ की पिस्तौल से वह उसे मार देगा । बाकी, गौरव और रोशन ने सारे कर्मचारियों और बैंक में लाइन में लगे सारे ग्राहकों को पिस्तौल दिखा कर उन्हें जमीन पर आँखें बंद करके लेट जाने को कहा । बैंक के कर्मचारियों को चेतावनी देते हुए उन्होंने अपने पास के चार बड़े, लेकिन पुराने, मैले और फटे से, बैग फेंके और बोले कि इन में सारी रकम दो मिनट में भर दो । क्योंकि उन सब के पास पिस्तौलें थी, सारे ग्राहक और कर्मचारी, डर से सहमे हुए, जो कहा गया, करते रहे । अंत में रोशन ने एक २००रु का नोट और एक लिफाफा एक कर्मचारी को दिया और कहा इसे एक बैग के ऊपर रख दे । इस सब कार्यवाही में सिर्फ लगभग १५ मिनट लगे ।
निर्देशित काम होते ही, अल्ताफ, गौरव और रोशन, चारों बैग, 200 रु का नोट और लिफाफा बैन में ही छोड़ कर, भागते हुए अखिलेश की गाड़ी में जा बैठे और वहां से तेज़ी से भाग निकले । बैंसहमे हुए बैंक मैनेजर ने सारे ग्राहकों और कर्मचारियों को बाहर सुरक्षित जगह जाने को बोला और पुलिस को फ़ोन कर के बताया कि बैंक में डाका पड़ा है ।
बाहर बड़ी भीड़ जमा हो गयी थी और काफी शोर होने लगा था । इस भीड़ और शोर का लाभ उठा कर मैनेजर ने रुपयों से भरे हुए एक बैग को अपने कक्ष में बंद कर दरवाज़े पर ताला लगा दिया, और चिंतित और बेचैन सा दिखता बैंक के दरवाज़े के सामने बड़ी भीड़ में लोगों का सामना किया । तब तक TV और अखबार के पत्रकार, जिज्ञासु दर्शक और बहुत सारे लोग इकठ्ठा हो गए थे । सभी चिल्ला-चिल्ला कर “डकैती” के बारे में प्रश्न पूछ रहे थे । मैनेजर ने सब को शांत रहने की प्रार्थना की और बताया कि ३ डकैत बैंक में आये, उन्होने ३ बैग में रुपये भरवाये , लेकिन एक भी बैग ले नहीं गए । सारे कर्मचारी, गार्ड और ग्राहक सुरक्षित हैं, किसी को कोई चोट नहीं आई है और कृपया उनको अपना काम करने दें ।
जब तक पुलिस पहुंचे, मैनेजर ने भाग कर अपने कक्ष में रखा बैग निकाला और उसे जल्दी से अपनी गाड़ी की डिकी में रख कर भागता हुआ अंदर आया – इस बात से अज्ञात कि वहां १६-१७ साल के दो लड़के उसकी सारी हरकत सेल-फ़ोन पर रिकॉर्ड कर रहे थे ।
इतने में पुलिस पंहुच गयी और मैनेजर को बुला कर सारी बात विस्तार से बताने की मांग की । मैनेजर ने बताया कि तीन डाकू, काले कपड़ों में, काले चश्में लगाये, पिस्तौलें लिए बैंक के अन्दर घुसे थे और तीन बैगों में रकम भरवा कर नदारद हो गए । एक बैग के ऊपर २००रु का नोट और एक लिफाफा छोड़ गए हैं, जिसे अभी खोला नहीं है । यह कह कर मैनेजर ने वह लिफाफा दारोगा को दे दिया । दारोगा ने, जिस के बारे में आपको पता ही है कि मैनेजर से मिला हुआ था, लिफाफा अपनी जेब में रखा और दूसरे कर्मचारियों को तहकीकात के लिए मैनेजर के कक्ष में बुलाया और मैनेजर को कहा कि वो बाहर इंतज़ार करे ।
पुलिस ने और पांच कर्मचारियों का साक्षात्कार (interview) किया । उन पांचों कर्मचारियों ने बताया कि डाकुओं ने चार बैग फेंके थे और सभी में रकम भरवाई थी । मैनेजर ने सिर्फ तीन बैगों का जिक्र किया था, इसलिए दारोगा को लगा की दाल में ज़रूर कुछ काला है और मैनेजर कुछ छुपा रहा है । दारोगा को वो लिफाफा भी रहस्मय लगा और उसने उसे थाने में ही जाकर खोलना ठीक समझा ।
दारोगा ने मैनेजर को फिर से बुलाया और, पहले धीरज के साथ और फिर डांट-फटकार और धमकी के साथ, पूछा तो मैनेजर ने सारी बात उगल दी और बताया की उसने सोचा कि इतनी हड़बड़ी, आतंक और चिल्लाहट के समय किसे याद रहेगा कि वहां चार बैग थे या तीन, इसलिये उसने एक बैग अपनी गाड़ी में छुपा कर रखा है । उसने, दोस्ती का वास्ता देते हुए, उस धन को बाँट लेने का प्रस्ताव रखा । दारोगा बोला कि आज के वातावरण में यह करना ठीक नहीं है और वो कल उनके घर में आ जायेगा ।
उधर अखिलेश, गौरव, रोशन और अल्ताफ गाड़ी से पहुंचे एक उजड़े हुए मैदान में एक जगह, जहां दूर गहरी झाड़ियाँ थीं। उन झड़ियों के पीछे रुक कर, अपने सारे कपड़े, जूते, चश्में, और मास्क को, दोनों फ़र्ज़ी लाईसेंस प्लेटों के साथ आग में जला दिया । तीन चार मिनट में, जब ये पक्का हो गया कि सब चीज़ें जल गयी हैं, वे अपनी वर्दियाँ पहन अपने-अपने ऑफिस की ओर चल पड़े, और रोज़ाना से पांच मिनट पहले ही पंहुच गए और किसी को शक करने का मौका नहीं दिया । सब को ऐसा लगा कि रोज़ की तरह वो खाने से वापस आ रहे है । फर्क सिर्फ इतना था कि उनके सुपरवाइजर ने , जो बहुत उत्तेजित अवस्था में थे, उन्हें जल्दी से जन-सेवा बैंक पहुंचने का आदेश दिया, क्योंकि वहां डकैती के बाद भीड़ को कण्ट्रोल करना मुश्किल हो रहा है । अल्ताफ और अखिलेश वहां पंहुचे और इसी बीच गौरव और रोशन (और उनके दारोगा) भी वहीँ पहुंच गए जहां वो कुछ मिनट पहले ही थे ।
अब तक तो डकैती की खबर पूरे देश में फैल गयी थी । टी वी और रेडियो वालों की तो जैसे दिवाली हो गयी थी । हरेक स्टेशन वाले TRP को ऊंचा करने के लिए वे बार-बार उसी खबर को दोहरा कर, उत्तेजित और बनावटी, चिंतिंत और व्यथित आवाज़ में खबर फैला रहे थे, यह दावा कराते हुए कि यह खबर सबसे पहले इस चैनल ने आपको सुनायी है । इसके सिवा Social Media में तो जैसे आग लग गयी । पूरे देश में हरेक media outlet में यह खबर वायरल हो गयी और बैंक के पास से लोग, जो अपना पैसा निकालना चाहते थे, हट ही नहीं रहे थे । बैंक को तो, जब तक पूरी जांच-पड़ताल नहीं हो जाती, बंद कर दिया गया था, लेकिन पुलिस की याचना भी कोई सुनने को तैयार नहीं था । उन्हें तो सिर्फ अपने पैसों की चिंता थी ।
दो बच्चे, जिन्होने मैनेजर की हरकतों को रिकॉर्ड किया था, अगर चाहते तो अपनी रिकॉर्डिंग को वायरल कर अपना “नाम” सुर्ख़ियों में पूरे देश को दिखा सकते थे । लेकिन वे बड़े समझदार और नेक बच्चे थे । उन्होंने सोचा कि वह ये video सबसे पहले पुलिस को देंगे और वो भी अभी नहीं लेकिन एक ऐसे अवसर पर जिसका असर सबसे ज्यादा पड़े । फिर अगर पुलिस ने सच्चाई और ईमानदारी से इस्तेमाल नहीं किया तो वे इसे वायरल कर देंगे । इसलिए उन्होंने एक-एक प्रति (copy) अपने पास सुरक्षित रख ली थी ।
जब डकैती की खबर सब जगह फैल रही थी, शहर के सारे नेताओं, और मुख्यमंत्री तक, ने पुलिस पर बड़ा जोर डाला । जब – जब बात “पैसे” की होती है, और “वोटों” की होती है तो उनको बहुत बड़ा महत्व दिया जाता है । इसलिए इस मामले में मुख्यमंत्री ने स्वयं सबसे बड़े अधिकारी Deputy Inspector General (DIG) और Senior Superintendent of Police(SSP) को इस मामले कि जाँच-पड़ताल स्वयं करने और मुख्यमंत्री को हर दो घंटे में फ़ोन करने को कहा । DIG ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह खुद ही, अभी ही, इस मामले को अपने हाथ में लेंगे, दो दिन में इस केस को सुलझा लेंगे और डाकूओं को पकड़ कर जेल में डाल देंगे ।
DIG तुरंत ही थाने पहुंचे और दारोगा से विस्तार से पूरी घटना के बारे में पूछताछ की । दारोगा सहमा हुआ था क्योंकि उसे यह आशा नहीं थी कि मामला इतना बढ़ जायेगा । उसने पूरी बात बताई, लेकिन बोला कि मैनेजर के कहने के मुताबिक वहां तीन बैग थे और वह मैनेजर का, कर्मचारियों से अधिक विश्वास करता है । दारोगा ने उस लिफाफे के बारे में भी बात की और बोला कि मैं उसे अभी ही खोलने जा रहा था, तब तक आप आ गए । अब मैं आपको ही देता हूँ । DIG/SSP ने लिफाफा खोला और पढ़ा । उसमे लिखा था कि “हम लोग जनता के सेवक हैं और किसी को भी किसी तरह से हानि पहुँचाने के पक्ष में नहीं हैं । सिर्फ भ्रष्टाचार के विरूद्ध हैं । हम किसी के धन के पीछे नहीं हैं और इसलिए हम चारों बैग यहीं छोड़ कर जा रहे हैं और ऊपर से २००रु भी”
DIG तो दंग रह गए की यह कैसी अजीबो – गरीब डकैती है । न किसी का पैसा गया, न किसी को शारीरिक चोट या किसी भी तरह की हानि हुई । इस मामले का बहुत ही बारीकी से अनुसन्धान और जाँच करना बहुत ही आवश्यक है । उन्होंने जल्द ही पांच विश्वसनीय अधिकारियों की एक समिति बनायी और उन्हें आदेश दिया कि वह अपनी पूरी समर्थता इस केस पर लगा कर इसे तुरंत सुलझाएं ।
सबसे पहले समिति ने बैंक की CCTV की footage मंगाई और उसे बड़े ही ध्यान से और जासूसी आँखों से देखा । Footage में उन्होंने देखा कि एक ग्रे रंग की मारुती बोलेनो बैंक के बाहर इंजन चालू रखे खड़ी है जिसमे तीन लोग भाग कर आकर बैठ गए और ड्राईवर, जो उनका इंतज़ार कर रहा था, जल्द ही वहां से रवाना हो गया । बैंक के CCTV और रोड के दूसरे CCTV में बहुत दूर तक की सारी footage थी, लेकिन रोड की साइड में जहां गाड़ी मुड़ी, वो footage नहीं था ।
खैर, पुलिस ने कार की प्लेट का नंबर TVऔर अख़बारों को दे दिया और बड़ी ही शीघ्रता से उस गाड़ी को ढूंढने में तत्पर हो गए । जितने भी सुराग मिल सकते थे उन्हें ढूंढने लग गए ।
जब पुलिसवाले गाड़ी को ढूंढ रहे थे तो उनको एक गाड़ी मिली जिसका प्लेट नंबर डाके वाली गाड़ी से मिलता था । उसे रोक कर उन्होंने जांच की तो पता लगा कि वह तो एक बड़े ही सज्जन व्यक्ति थे । उनसे पूछ – ताछ के बाद उनको लगा कि वह डाका ही नहीं डाल सकते, इसलिए उनका पता ले कर उन्हें छोड़ दिया । टीवी और रेडियो वालों को जब पता लगा तो उन्होंने जोर देकर “Breaking News” ब्रॉडकास्ट कर दी और अंत में बताया कि इस गाड़ी का पकड़ा जाना केस को सुलझा नहीं पाया ।
अभी २ घंटे ही हुए थे कि, जाँच करते – करते पुलिस को पता चला कि उस लाइसेंस प्लेट की एक और गाड़ी मिली है जिसे पड़ने के लिए उन्हे ४० कि.मी. तक उसका पीछा करना पड़ा, लेकिन वह भी संधिग्ध नहीं थी । सिर्फ एक जवान अपनी गाड़ी चलाने की दक्षिता दिखा रहा था । टीवी और रेडियो तो एक और सनसनी खेज खबर दर्शकों को बाँटने में नहीं चूके । पुलिस वालों की तो नाक में दम आ गया था ।
अंत में रात हुई और दारोगा थक कर सोने की चेष्टा कर रहे था कि एक फ़ोन आया कि पड़ोस के शहर में भी उस प्लेट वाली एक गाड़ी मिली है । उसके तुरंत बाद ही पता लगा कि पड़ोस के दूसरे शहर से भी खबर आयी कि वहां एक नहीं दो गाड़ियाँ, जिनकी प्लेट डाके वाली गाड़ी से मिलती है, मिली है । दारोगा ने बहुत सोचने के बाद DIG को २ बजे रात को फ़ोन किया तो DIG तो भड़क गए । उन्होंने दारोगा को डांट फटकार लगाई और बोले कि इतनी छोटी-छोटी बातों के लिए उन्हें फोने न करें और फ़ोन को पटक के रख दिया ।
पूरे पुलिस डिपार्टमेंट की नाक में दम हो गया था । उन्हें पता तो था नहीं कि और कितनी गाड़ियां किस – किस शहर में हैं जो झूठी है और पुलिस को बहकाने में सफल हुई हैं । अब तो जनता को भी प्लेट का नंबर याद हो गया था और वो भी हर गाड़ी को शक से दोखने लगी थी । Social Media और शरारती लोगों ने तो इन सब में, पुलिस को मजाक का विषय बन कर बड़ा ही आनंद उठाया ।
पुलिस बेचैनी से किसी सुराग का इंतज़ार कर रही थी । पुलिस को खबर मिली कि दूसरे और तीसरे शहर में भी तीन और दो गाड़ियाँ उसी प्लेट नंबर की मिली है । अब तक तीनों शहरों में मिलाकर करीब दस संदिग्ध गाड़ियाँ मिली थीं । तीनों शहरों की पुलिस तो सुनते-सुनते तंग आ गयी थी और पता नहीं था की सिर्फ एक गाड़ी नहीं मिली है कि दस नहीं मिली हैं । अब उनमे उस गाड़ी के नंबर को ढूंढने की कोई इच्छा ही नहीं रह गयी थी लेकिन ऊपर से निरंतर दबाव आ रहा था । DIG साहब और दूसरे अधिकारी तो चुप ही नहीं बैठे थे क्योंकि मुख्यमंत्री हर रोज़ DIG को फ़ोन करते थे । और Social Media कब चुप होता है । उन्होंने तो सारी ख़बरें दुनिया भर में प्रकाशित कर दी थीं । लेकिन इस सब के बावजूद भी डाकुओं का पता नहीं चला था ।
तीन दिन बाद जब मेरे शहर में एक गाड़ी बड़ी ही मुश्किल से मिली तो अल्ताफ (वो तो जानकार था ही) ने पकड़ी हुई उस गाड़ी को अपने दारोगा को दिखाया कि गाड़ी की सिर्फ पीछे वाली प्लेट ही डाके वाली गाड़ी से मिलती है, सामने वाली प्लेट नहीं । दारोगा काफी शर्मिंदा हुआ कि उसके पुलिसवाले ही नहीं, लेकिन पड़ोसी शहर वाले भी बड़े ही बेवकूफ और निकम्मे साबित हुए । लेकिन उसने ये बात किसी को नहीं बताई ।
अब तक, १२ गाड़ियों के पीछे इतना समय, मेहनत और चिंता के बाद भी उन्हें कोई भी सफलता नहीं मिली । मिले तो बस जनता की निंदा और निक्कमेपन के सच्चे इल्जाम । Social Media पर तो यह record breaking, 2 दिनों में २५ लाख हिट्स, विषय बन गया था । छोटे-छोटे बच्चे भी उनके ऊपर हँसते और चुटकुले बनाते ।
दारोगा तो वैसे भी एक और मामले की वजह से बेचैन था क्योंकि उसे उस धन की चिंता थी जो मैनेजर से लेना था । दो दिन बाद वह बड़े ही संकोच के साथ चुप-चाप मैनेजर के घर पहुंचा और उससे धन के बंटवारे के बारे में बात-चीत की । मैनेजर उसे धन देने के बारे में मुकरा नहीं और उसने उसी मैले बैग में आधा धन दारोगा को दे दिया । लेकिन दोनों में किसी को खबर नहीं थी कि DIG की समिति ने, क्योंकि उन्हें मैनेजर और दारोगा पर विश्वास नहीं था, दोनो के घर के पास कैमरा लगा दिये थे । इसलिए, जब तक दारोगा फटा-सा बैग लेकर घर पंहुचा, उसका मैनेजर से बैग लेते हुए और अपने घर पहुंचते हुए का पूरा ब्योरा रेकॉर्ड हो गया था ।
अब तक DIG साहब का धैर्य अपनी सीमा तक पहुँच गया था । वे बड़े ही गुस्से में आ गए और उन्होंने समिति को बुलाया और बड़ी डांट सुनायी । समिति के सारे सदस्य बड़े ही शर्मिंदा और सदमें में थे । लेकिन वह कुछ बोलने की हिम्मत न कर सके और DIG से माफ़ी मांग, अथक प्रयास करने का आश्वासन देकर मीटिंग से बाहर आये ।
समितिको थोड़ी राहत तब मिली, जब उन दो लड़कों ने बड़ी सोच के बाद यह निर्णय किया कि वो समिति को video देंगे । उस Video से मैनेजर की पूरी पोल खुल गयी और जल्द ही समिति ने उन्होंने उसे धर दबोचा । यह खबर जब बाहर आयी तो TV और Social Media में उन दो लड़कों की जागृति, भलमनसाहत और जनता की सहायता की भावनाओं की बड़ी ही सराहना हुई । लेकिन यह भी कहा कि इसमें पुलिस ने तो कुछ भी नहीं किया ।
सौभाग्यवश कमिटी को थोड़ी सी साँस मिली जब उन्होंने मैनेजर और दारोगा के बैग के आदान-प्रदान के video टीवी को दिए । इससे तुरंत ही दारोगा और मैनेजर को गिरफ्तार कर लिया गया । दोनों के घरों पर रेड डाला गया । मैनेजर के आलीशान बंगले से करोड़ों रुपये कैश, साथ में जवाहरात (चूडियाँ, हार, कंगन इत्यादि) और विलासिता की चीज़ें, जो उन्होंने शायद कितने ही जरूरतमंद, भोले-भाले लोगों को लूट कर जमा की थीं, जब्त कर लिए गये । दारोगा भी कम तो नहीं थे । उसके पुलिस quarter से भी २ करोड़ रुपयों की राशी, गहने और उनके नाम पर कई जमीन संबंधी कागज़ात मिले, जो उन्होंने आम लोगों को धमका कर हथिया लीं थीं ।
DIG ने बड़ी शान से एक बड़ी प्रेस कांफ्रेंस बुलाई और बड़े ही गर्व से ऊँची आवाज़ में जनता को बताया कि उन्होंने भ्रष्टाचार का उन्मूलन कर दिया है और जन-सेवा बैंक के मैनेजर और उनके ही दारोगा की करतूतों का पर्दाफाश कर दिया है । जनता की रक्षा करने का दायित्व जो उनको सौंपा गया है, उसे उन्होंने पूरा कर दिखाया है । वो जनता के बड़े आभारी हैं कि उन्होंने उनके ऊपर विश्वास किया । अब वो इन अत्याचारों से मुक्त हो कर चैन की साँस ले सकती है ।
सच तो यह है कि DIG साहब ने यह नहीं बताया कि डाका किसने डाला था, पुलिस को निकम्मा साबित करने की साजिश करने वाले कौन थे ।
उसी रात जब DIG को नींद नहीं आ रही थी तो उनके दिमाग़ में ख्याल आया क्यों न इस डकैती के बारे में कुछ ग्राहकों और बैंक की तरफ से एक FIR दर्ज किया जाये । इससे शायद जनता को थोड़ा आश्वासन मिलेगा और उन्हें थोड़ा समय । जब यह योजना उन्होंने अभियोक्ता (prosecutor) को बताई तो थोड़ी देर सोचने के बाद अभियोक्ता ने उनसे अकेले में बताया की वे इस बात को किसी और को बिल्कुल नहीं बताएं और इसको यहीं रहने देने में ही उनका भला है । DIG आश्चर्य में पड़ गए और पूछा क्यों, तो अभियोक्ता ने बताया कि इस से उनको हानि होगी और वह व्यंग्य के पात्र हो जायेंगे । अगर किसी तरह यह केस जज के पास पहुँच भी गया तो वो पूछेंगे की इस मामले में, किस का धन गया है? किस को चोट लगी है? कोई घायल हुआ है क्या? क्या किसी का अपमान हुआ है? अगर ये सब नहीं हुआ है तो आपके पास केस क्या है? वे ऐसा केस छूने की भी जुर्रत नहीं करेंगे । अभियोक्ता ने तो ऊपर से यह भी पूछा कि क्या आप पुलिस के निक्कमेपन, बेबसी और भ्रष्टाचार को जनता के सामने नंगा करना चाहते है? DIG साहब की तो बोलती ही बंद हो गयी ।
इन सारी घटनाओं और दुर्घटनाओं, पुलिस के सिरदर्द, जनता के हंसने और रोने (कि आजकल कोई सुरक्षित नहीं है और पुलिस पर भरोसा करना व्यर्थ है) के बावजूद भी नकली प्लेट वाली गाड़ियों का तीन शहरों में एक ही साथ पीछा करके, डाकुओं को पकड़ने की पुलिस की मृगतृष्णा तो पूर्ण हुई ही नहीं और शायद होगी भी नहीं – वो प्यास तो बुझेगी ही नहीं ।
अस्वीकरण
इस कहानी की सारी घटनाएँ, सारे पात्र और स्थान काल्पनिक हैं । कहानी का उद्देश्य केवल मनोरंजन है । व्यंग्य, सामाजिक व्यवहार, प्रथाओं और सु-और कु- कृत्यों का वर्णन केवल साधन हैं ।
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