मेरी अज्जी और मैं — अनुवाद की कहानी

अनुवाद मेरा शौक़ — मेरी हॉबी है । मैं केवल छपने के लिए ही नहीं, मन बहलाने के लिए भी अनुवाद करती रही हूँ । मेरी माँ श्रीमती स्वरूप कुमारी बाँठिया (अम्मा) को पत्र-पत्रिकाएँ और किताबें पढ़ना बहुत प्रिय था और हिंदी तथा गुजराती भाषा में उन्होंने केवल सामान्य कथा-कहानी ही नहीं, क्लासिक और गंभीर साहित्य भी बहुत पढ़ा था । आत्मकथाएँ और जीवनियाँ पढ़ना उन्हें बहुत अच्छा लगता था — विशेषकर वे जिनमें अपने समय और समाज का, गंभीर सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक घटनाओं का ब्यौरा भी हो । वे ख़ूब रुचि से पढ़तीं, पढ़े हुए पर बात भी करतीं और जो बातें (जैसे भारतका स्वाधीनता संग्राम) उनके अपने ज्ञान और अनुभव के क्षेत्र में होतीं उनके बारे में बड़े उत्साह से कई जानकारियाँ भी देतीं ।

अंग्रेज़ी पढ़ने में अम्मा की गति नहीं थी इसलिए मुझे अंग्रेज़ी में जब भी छोटी-मोटी कोई ऐसी चीज़ मिलती जिसमें अम्मा की ज़्यादा रुचि होती थी, मैं उसका अनुवाद करके उन्हें पढ़ने को दे दिया करती थी । ऐसा तो कभी सोचा भी नहीं था कि कभी पूरी किताब का अनुवाद भी इसी क्रम में कर डालूँगी ।

जब Ajji and I पढ़ना शुरू किया तो महामानवी अज्जी, उनका चरित्र, उनका जीवट और उनके जीवन की घटनाएँ इस तरह मुझ पर छाने लगीं कि मैं उन्हें अपनी ९६ वर्षीय अम्मा के साथ साझा करने को ललक उठी । ऐसे ही, पहले अध्याय का कुछ हिस्सा अनुवाद कर के उन्हें दिया । उन्हें अच्छा लगेगा, यह तो मैं जानती थी, पर उसे पूरा पढ़ डालने को वे इस क़दर लालायित होंगी यह मुझे भी अनुमान नहीं था । बस, यह यात्रा शुरू हो गई । उन्हें ‘रफ़’ (rough) लिखाई के टाइप होकर आने का भी धैर्य नहीं था । मैं किसी भी, कैसे भी काग़ज़ पर लिख-लिखकर उन्हें पकड़ाती जाती और वे साथ-साथ पढ़ती जातीं — अंत तक । इस पुस्तक को उन्होंने इतना पसंद किया, इससे इतना आनंद और सोच-विचार की इतनी सामग्री पाई कि मेरा श्रम पूरी तरह सार्थक हो गया ।

इस पुस्तक की रचना के लिए मैं नीलिमा को बधाई भी देती हूँ और धन्यवाद भी । नीलिमा के लिए इस Labour of love की प्रेरणा उनकी अज्जी थीं । यह अनुवाद मेरी ओर से पूज्य अज्जी को श्रद्धांजलि और अपनी अम्मा को मेरी ओर से सादर प्रेमांजलि है ।